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जाऊँ कहाँ तज शरन तिहारे ॥ टेक ॥
गुण चारे २६
चूक अनादितनी या हमरी, माफ करो कम डूबत हों भवसागरमें अब तुम बिन को मुह वार
निकारे ॥ २॥
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तुम सम देव अवर नहिं कोई, तातैं हम यह हाथ पसारे ॥ ३ ॥ मो - सम अधम अनेक उधारे, वरनत हैं श्रुत शास्त्र 'दोलत' को भवपार करो अब आयो है शरनागत
हे प्रभु! मैं आपकी शरण को छोड़कर अन्यत्र कहाँ जाऊँ? मैं अब तक आपकी शरण में नहीं आया अनादि काल से मेरी यह ही चूक / गलती रही है। हे करुणागुण के धारक ! इसके लिए मुझे क्षमा करो ।
अपारे ॥ ४ ॥
थारे ॥ ५ ॥
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मैं भव-सागर में/ संसार में डूब रहा हूँ. आपके अतिरिक्त कौन है जो मुझे इससे बाहर निकाल सके !
आपके समान अन्य कोई देव नहीं है, जिसके आगे हम हाथ पसारकर याचना कर सकें।
आपने मेरे समान अनेक पापियों को पार उतार दिया है, गुरु इसका वर्णन करते हैं ।
दौलत भजन सौरभ
और शास्त्र
दौलतराम कहते हैं कि मुझे भी अब भन से / संसार से / जन्म-मरण की भटकन से पार लगाइए, मुक्त कीजिए। मैं अब आपकी शरण में आया हूँ.. आ गया हूँ ।
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