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६०. धन धन साधर्मीजन मिलन की घरी ६१. धनि मनि जिनकी लगी लौ शिव और नै ६२. धनि मुनि जिन यह भाव पिछाना ६३. धनि मुनि निज आतम हित कीना ६४. ध्यान कृपाण पानि गही नासी ६५. न मानत यह जिय निपट अनारी २६. नाथ मोहे तारत क्यों ना ६७. निज हित कारज करना भाई ६८. नित पीज्यो धीधारी ६९. निपट अयाना तूने आपा नहीं जाना ७०. निरखत जिनचन्द्रवदन ७१, निरखत जिनचंद री माई ७२. निरखत सुख पायो जिन मुखचंद ७३. निरख सखी ऋषिन को ईश ७४. नेमि प्रभु की श्याम वरण ७५. पद्या सद्म पद्मा पद पद्मा ७६. पारस जिन चरन निरख ७७. पास अनादि अविद्या मोरी ७८. प्यारी लागै म्हानै जिन छवि थारी ७९. प्रभु थारी आज महिमा जानी ८०. भज ऋषिपत्ति ऋषभेश ८१. भविन सरोरुह सुर भरि गुण ८२. भाखू हित तेरा, सुनि हो मन मेरा ८३. मत कीज्यो जी यारी घिन गेह देह ८४. मत कीज्यो जी यारी ये भोग भुजंग ८५. मत राचो धी-धारी ८६, मन-वच-तन करि शुद्ध भजो जिन ८७, मानत क्यों नहिं रे, हे नर सीख सयानी ८८. मान ले या सिख मोरी। ८९, मेरी सुध लीजे ऋषभ स्वाम ९०. मेरे कब कैवा दिन की सुघरी ९१. मेरो मन ऐसी खेलत होरी ९२. मैं आयो जिन शरन तिहारी
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दौलत भजन सौरभ