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अपनत्व के कारण, मोहवश, नशेबाज की भाँति उन्मत्त होकर प्राणी कभी रोता हैं तो कभी प्रसन्न होता है।
जिनेन्द्र के उपदेशरूपी किरण से अपने को पर से भिन्न पहचान ! हे जगत शिरोमणि ! हृदय से मोह की ऐसी बिलासिता की दूर कर दान भी ऐसा ही चाहते हैं कि उनका चित्त स्थिर हो ।
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अनिवार जो टले नहीं। पैसे प्रवेश करना ।
दौलत भजन सौरभ
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