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जो इस सत्य को समझते हैं वे सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप अमृत की वर्षा का आनन्द लेते हैं, उसका पान करते हैं । दौलतराम कहते हैं कि यह त्रिभुवन में प्रसिद्ध है, लोक में ख्यातिप्राप्त है कि उनके यशगान से विमोह का ताप दूर होता है।
चतुधात - स्व-चतुष्टय; नभै-हतन = नभ-ताड़न - नम को मारने की क्रिया; मुनत - मनन करना; दुःख फलद जलद सम = दुःखरूपी फल देनेवाले बादल के समान।
दौलत भजन सौरभ
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