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जन्मोत्सव के उपलक्ष में नट की भाँति नृत्य कर प्रसन्न हो रहा है {५३); माता मरुदेवी के प्यारे, पिता नाभिराय के दुलारे ऋषभ जिनेन्द्र की जय हो (४९); उनके गर्भ में आने के छ: माह पूर्व से इन्द्र ने पृथ्वी को रत्नमयी कर दिया, जन्म होते ही सुमेरु पर्वत पर ले जाकर इन्द्र ने क्षीरोदधि के जल से उनका न्हवन किया (५०); जिनको नीलांजना के नृत्य समय हुए मरण को देखकर वैराग्य हो गया (५०); जिन्होंने स्व-पर का भेद समझकर पर-परिणतियों को त्याग दिया (५२); जो परम दिगम्बर रूप धारणकर पद्मासन मुद्रा में हाथ पर हाथ रखकर ध्यान में लीन हैं (४८); देव, असुर, मनुष्य आदि जिन्हें नमन करते हैं (४८), (५०); ऐसे ऋषभदेव को जय हो (४९); उन ऋषभदेव का स्मरण कर (५०); हे स्वामी ! मेरे भी दुःखों का नाश हो (४९); मुझे भी मोक्षपथ का अनुगामी बनाइये (५१); हम हाथ जोड़कर आपको धन्दना करते हैं (५२) ।
जगत को आनन्दित करनेवाले हे अभिनन्दन जिनेश्वर ! मैं आपके वरणकमल में नमन करता हूँ (५४) आपका अरुण वर्ण पापों को हरनेवाला है (५४)।
हे पद्मप्रभ जिनदेव ! आपका उपदेश सिंह की भाँति मिथ्यात्वरूपी हाथी का नाश करनेवाला है। पपोसा आपका तप-स्थान है, आप मोक्षरूपी लक्ष्मी के स्वामी हैं, मैं आपकी महिमा गाने में असमर्थ हूँ (५५)।
चन्द्रमा के समान मुख्नवाले हे चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र ! जगत में भटकानेवाले संशय विमोह व विभ्रम का हरण करो (५६)।
हे वासुपूज्य जिनदेव आपकी जय हो। चंपापुरी में हुए आपके पाँचों कल्याणक अत्यन्त सुखकारी हैं (५७)।
राजा विश्वसेन व रानी ऐरादेवी के निवास पर भावी तीर्थकर शान्तिनाथ के जन्म पर मंगल उत्सव हो रहा है । इन्द्र ने उनके जन्म कल्याणक का उत्सव बहुत उल्लास से मनाया है, सभी देवों ने अपने अपने नियोगों का निर्वाह किया है। तीर्थंकर चक्रवर्ती व कामदेव इन तीन पदवियों के धारक भगवान शान्तिनाथ के श्रीचरणों की शरण में जय-जयकार है (५८)1
कुंथु जैसे छोटे-छोटे सभी जीवों के रक्षक श्री कुंथुनाथ ! मुझे इस संसार के दुःखों से मुक्त करो (५९)।
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