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अनंत और अचिन्त्य, अपार गुणों के धारी हो, जिनका वर्णन करने में कोई भी समर्थ नहीं है । हे जगत के सिरमौर, आपके ही पथ का अनुगामी- भक्त, । मैं दौलतराम दोनों हाथ जोड़कर आपको शीश नमाता हूँ, प्रणत होता हूँ ।
भवभूधर पविभारं संसाररूपी पर्वत के लिए भारी वज्र समान । अद्रि = पहाड़ क्रम चरण ।
दौलत भजन सौरभ
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