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जिनके ज्ञान का उजाला अलोकाकाश को भी लाँघ रहा है। दौलतराम कहते हैं कि मनरूपी कुमुदिनी को विकसित करनेवाले, प्रफुल्लित व प्रमुदित करनेवाले, जगत से तारनेवाले हे चरमशरीरी, अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ! आपकी जय हो।
उडुगन = तारागण, दोषं = पाप, लंक - ढेर, पयोद = बादल, चरम जगतारी -- अंतिम तीर्थकर ।
दौलत भजन सौरभ
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