________________
भूमिका
तो पहले ही हो चुका था। माथुरीवाचना या वलभी वाचना में उनमें बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है। आज जो नियुक्तियाँ हैं वे मात्र आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, आवश्यक, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, दशाश्रुतस्कन्ध, व्यवहार और बृहत्कल्प पर हैं। ये सभी ग्रन्थ विद्वानों की दृष्टि में प्राचीन स्तर के हैं और इनके स्वरूप में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है। अत: वलभीवाचना से समरूपता के आधार पर नियुक्तियों को उससे परवर्ती मानना उचित नहीं है।
उपर्युक्त समग्र चर्चा से यह फलित होता है कि नियुक्तियों के कर्ता न तो चतुर्दश पूर्वधर आर्य भद्रबाहु हैं और न वराहमिहिर के भाई नैमित्तिक भद्रबाहु। यह भी सुनिश्चित है कि नियुक्तियों की रचना छेदसूत्रों की रचना के पश्चात् हुई है। साथ ही यह भी सत्य है कि नियुक्तियों का अस्तित्व आगमों की देवर्द्धि वाचना के पूर्व था। नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र की रचना के पूर्व आगमिक नियुक्तियाँ अवश्य थीं। अत: यह अवधारणा भी भ्रान्त है कि नियुक्तियाँ विक्रम की छठी सदी के उत्तरार्द्ध में निर्मित हुई हैं।
यदि नियुक्तियों के कर्ता श्रतकेवली चतुर्दश पूर्वधर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु तथा वाराहमिहिर के भाई नैमित्तिक भद्रबाहु दोनों ही नहीं थे, तो फिर वे कौन से भद्रबाहु हैं जिनका नाम नियुक्ति के कर्ता के रूप में माना जाता है। नियुक्तिकर्ता के रूप में भद्रबाहु की अनुश्रुति जुड़ी होने से नियुक्तियों का सम्बन्ध किसी ‘भद्र' नाम व्यक्ति से अवश्य होना चाहिए और उनका अस्तित्व विक्रम की लगभग तीसरी-चौथी सदी के आस-पास होना चाहिए। नियमसार में आवश्यक की नियुक्ति, मूलाचार में नियुक्तियों के अस्वाध्याय काल में भी पढ़ने का निर्देश तथा उसमें और भगवती आराधना में नियुक्तियों की अनेक गाथाओं की नियुक्ति-गाथा के रूप में उल्लेखपूर्वक उपस्थिति यही सिद्ध करती है कि नियुक्ति के कर्ता उस अविभक्त परम्परा के होने चाहिए जिससे श्वेताम्बर एवं यापनीय सम्प्रदायों का विकास हुआ है। कल्पसूत्र स्थविरावली में प्राप्त आचार्य परम्परा में महावीर परम्परा में प्राचीनगोत्रीय श्रुतकेवली भद्रबाहु के अतिरिक्त दो अन्य भद्र नामक आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है- १. आर्य शिवभूति के शिष्य काश्यपगोत्रीय आर्यभद्र, २. और आर्य कालक के शिष्य गौतमगोत्रीय आर्यभद्र। संक्षेप में कल्पसूत्र की आचार्य परम्परा इस प्रकार है___ महावीर, गौतम, सुधर्मा, जम्बू, प्रभव, शय्यम्भव, यशोभद्र, सम्भूतिविजय, भद्रबाहु (चतुर्दशपूर्वधर), स्थूलिभद्र (ज्ञातव्य है कि भद्रबाहु एवं स्थूलिभद्र दोनों ही सम्भूतिविजय के शिष्य थे।), आर्य सुहस्ति, सुस्थित, इन्द्रदिन्न, आर्यदिन, आयसिंहगिरि, आर्यव्रज, आर्य वज्रसेन, आर्यरथ, आर्यपुष्पगिरि, आर्य फल्गुमित्र, आर्य धनगिरि, आयशिवभूति, आर्यभद्र (कायश्पगोत्रीय), आर्यकृष्ण, आर्यनक्षत्र, आर्यरक्षित, आर्यनाग,