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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन वंदामि भहबाहुं पाईणं चरिमसयलसुयनाणिं ।
सुत्तस्स कारगमिसिं दसासु कप्पे य ववहारे ।। इसमें सकलश्रुतज्ञानी प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु का वन्दन करते हुए उन्हें दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प एवं व्यवहार का रचयिता भी कहा गया है। यदि नियुक्तियों के कर्त्ता पूर्वधर श्रुतकेवली भद्रबाह होते तो, वे स्वयं अपने को कैसे नमस्कार करते। इस गाथा को हम प्रक्षिप्त या भाष्य गाथा भी नहीं कह सकते। ग्रन्थ की प्रारम्भिक मङ्गल गाथा होने से चूर्णिकार ने भी स्वयं इसको नियुक्तिगाथा के रूप में मान्य किया है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नियुक्तिकार चतुर्दश पूर्वधर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु नहीं हो सकते।
इस समस्त चर्चा के आधार पर मुनि जी इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि परम्परागत दृष्टि से दशाश्रुतस्कन्ध, कल्पसूत्र, व्यवहारसूत्र एवं निशीथ ये चार छेदसूत्र, आवश्यकनियुक्ति आदि दस नियुक्तियाँ, उवसग्गहर (उपसर्गहर) एवं भद्रबाहुसंहिता- ये सभी कृतियाँ चतुर्दश पूवर्धर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु स्वामी की मानी जाती हैं, किन्तु इनमें से चार छेदसूत्रों के रचयिता ही चतुर्दश पूर्वधर आर्य भद्रबाहु हैं। शेष दस नियुक्तियों, उवसग्गहर एवं भद्रबाहु संहिता के रचयिता अन्य कोई भद्रबाहु होने चाहिए और सम्भवत: ये अन्य कोई नहीं, अपितु वाराहसंहिता के रचयिता वाराहमिहिर के सहोदर मन्त्रविद्यापारगामी नैमित्तिक भद्रबाहु ही होने चाहिए।५५ ___ मुनिश्री पुण्यविजयजी ने नियुक्तियों के कर्ता के रूप में नैमित्तिक भद्रबाहु के होने के पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत किये
१. आवश्यकनिर्यक्ति (गाथा १२५२ से १२७०) में प्राप्त गन्धर्व नागदत्त के कथानक में नागदत्त के द्वारा सर्प के विष उतारने की क्रिया का वर्णन है।५७ उवसग्गहर में भी सर्प के विष उतारने की चर्चा है। अत: दोनों के कर्ता एक ही हैं और वे दोनों तन्त्र-मन्त्र में आस्था रखते थे।
२. पुन: नैमित्तिक भद्रबाहु के निर्यक्तियों के कर्ता होने के पक्ष में एक प्रमाण उनके द्वारा अपनी प्रतिज्ञागाथा में सूर्यप्रज्ञप्ति पर नियुक्ति लिखने की प्रतिज्ञा८ भी है। ऐसा साहस कोई ज्योतिष का विद्वान् ही कर सकता था। आचाराङ्गनियुक्ति में भी स्पष्ट रूप से निमित्त विद्या का निर्देश हुआ है। ५९
नैमित्तिक भद्रबाहु को नियुक्तिकार स्वीकार करने पर हमें नियुक्तियाँ को विक्रम की छठी सदी की रचनाएँ मानना होगा क्योंकि वाराहमिहिर ने स्वयं अपने समय (शक संवत् ४२७ अर्थात् विक्रम संवत् ५६६) का उल्लेख किया है।६० नैमित्तिक