________________
भूमिका
१३
यह भी तर्कसङ्गत नहीं प्रतीत होता कि चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु के काल में रचित नियुक्तियों को आर्यरक्षित के काल में सर्वप्रथम व्यवस्थित किया गया और परवर्ती आचार्यों ने अपने युग की आगमिक वाचना के अनुसार पुनः उन्हें व्यवस्थित किया। आश्चर्य तब और अधिक बढ़ जाता है जब इस परिवर्तन के विरुद्ध कोई भी स्वर उभरने की कहीं कोई सूचना प्राप्त नहीं होती है। इसके विपरीत आगमों में कुछ परिवर्तन करने का जब भी प्रयत्न किया गया तो उसके विरुद्ध स्वर उभरे और उन्हें उल्लिखित भी किया गया।
उत्तराध्ययननिर्युक्ति (‘अकाममरणीय' अध्ययन) में निम्न गाथा प्राप्त होती है
सव्वे एए दारा मरणाविभत्तीए वण्णिआ कमसो ।
सगलणिउणे पयत्थे जिण चउदस पुव्वि भासंति ।। २३२ ।।
( ज्ञातव्य है कि मुनिपुण्यविजय जी ने इसे गाथा २३३ लिखा है किन्तु ‘निर्युक्तिसङ्ग्रह' में इस गाथा का क्रम २३२ ही है) ।
इसके अनुसार “मरणविभक्ति में इन सभी द्वारों का अनुक्रम से वर्णन किया गया है, पदार्थों को सम्पूर्ण रूप से तो जिन अथवा चतुर्दशपूर्वधर ही जान सकते है।" यदि नियुक्तिकार चतुर्दशपूर्वधर होते तो वे इस प्रकार नहीं लिखते । शान्त्याचार्य ने इसे दो आधारों पर व्याख्यायित किया है। प्रथम, चतुर्दश पूर्वधरों में परस्पर अर्थज्ञान की अपेक्षा से कमी-अधिकता होती है, इसी दृष्टि से यह कहा गया हो कि पदार्थों का सम्पूर्ण स्वरूप तो चतुर्दशपूर्वी ही बता सकते हैं अथवा द्वार गाथा से लेकर आगे की ये सभी गाथाएँ भाष्य गाथाएँ हों । ५३ मुनि पुण्यविजय जी इन्हें भाष्य गाथाएँ स्वीकार नहीं करते हैं। भले ही ये गाथाएँ भाष्य गाथा हों या न हों किन्तु शान्त्याचार्य ने नियुक्तियों में भाष्य गाथा मिली होने की जो कल्पना की है, वह पूर्णतया असङ्गत नहीं है।
पुनः जैसा पूर्व में सूचित किया जा चुका है, सूत्रकृताङ्गनिर्युक्ति (पुण्डरीक अध्ययन) में 'पुण्डरीक' शब्द की नियुक्ति करते समय द्रव्य निक्षेप से एकभविक, बद्धायुष्य और अभिमुखित नाम - गोत्र ऐसे तीन आदेशों का नियुक्तिकार ने स्वयं ही सङ्ग्रह किया है । ५४ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य (प्रथमविभाग, पृष्ठ ४४-४५) में ये तीनों आदेश आर्यसुहस्ति, आर्य मङ्ग एवं आर्यसमुद्र की मान्यताओं के रूप में उल्लिखित हैं । ५५ इन तीनों आचार्यों के पूर्वधर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु (प्रथम) से परवर्ती होने से उनके मतों का सङ्ग्रह पूर्वधर भद्रबाहु द्वारा सम्भव नहीं है।
दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति के प्रारम्भ में निम्न गाथा प्राप्त होती है