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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
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घण (घन) प्रगाढ़, सान्द्र घेत्तुं (गृहीतुं) ग्रहण करने के लिए घोसणया (घोषणया) घोषणा द्वारा
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६२,
चंदपडिमाओ (चन्द्रप्रतिमाः) तप-विशेष चउण्ह (चतुष्क) चार चउत्थम्मि (चतुर्थ्याम्) चतुर्थिका चउत्थिया (चातुर्थिका) चौथी चउमासिएण (चातुर्मासिकेन) चातुर्मासिक चत्तारि (चत्वारि) चार चरणेसुं (चरणेषु) चारित्र में चिक्कण (चिक्कण) निबिड, घना चिक्खल (दे) पङ्क चित्तल (चित्रल) चितकबरा चिरद्वितीए (चिरस्थितिके) दीर्घकाल तक रहने वाला चुओ (च्युत) एक भव से दूसरे भव में अवतीर्ण
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५९ १२
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१५,२८ ११८ ९६
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छक्कं (षट्क) छ: का समूह छत्तए (छत्रेण) छत्र द्वारा छत्तट्ठिय (छत्रस्थित) राजचिह्न-विशेष पर निर्मित छद्दिसि (षड्दिक्षु) छ: दिशाओं में छम्मासित्तो (षण्मासिक:) छ: मास का छव्विहो (षड्विधः) छ: प्रकार का छातो (दे) बुभुक्षित छिण्णमंडबं (छिन्नमण्डप) जिस गाँव या शहर के समीप दूसरा गाँव
आदि न हो छोढुं (सोढुं) सहन करने के लिए
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जंघद्धे (जङ्घार्द्ध) जङ्के की आधी ऊँचाई जट्ठोग्गहे (ज्येष्ठावग्रह) चार मास तक एक क्षेत्र का उत्तमवास
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