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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति मूल-छाया-अनुवाद अवहंत गोण मरुए चउण्ह वप्पा उक्करो उवरिं। छोढुं मए सुवट्ठाऽतिकोवे णो देमो पच्छित्तं ॥१०३॥ वणिधूयाऽच्चकारिय भट्टा अट्ठसुयमग्गओ जाया। वरग पडिसेह सचिवे, अणुयत्तीह पयाणं च ॥१०४॥ णिवचिंत विगालपडिच्छणा य दारं न देमि निवकहणा। खिसा णिसि निग्गमणं चोरा सेणावई गहणं ॥१०५॥ नेच्छइ जलूगवेज्जगगहण तम्मि य अणिच्छमाणम्मि। गाहावइ जलूगा धणभाउग कहण मोयणया ॥१०६॥ अवधीत् गां मरुत् चतुष्कवप्राणां उत्करः उपरि । सोढुं मया सुस्पृष्टाऽतिकोपे न ददामि प्रायश्चित्तम् ॥१०३॥ वणिग्दुहिताऽत्यहङ्कारिता भट्टा अष्टसुताग्रतः जाता । वरकप्रतिषेधः सचिवे अनुवृत्तिभिः प्रदानं च ॥१०४॥ नृपचिन्ता विकालप्रतीक्षणं च द्वारं न ददामि नृपकथनात् । खिसा (निन्दा) निशि निर्गमनं चौराः सेनापतिः ग्रहणम् ॥१०५॥ नेच्छति जलौका वैद्यकग्रहणं तस्मिन् च अनिच्छन्ती।
ग्राहयति जलौका धनभ्रातृकः कथनं मोचनम् ॥१०६॥ ___ मरुत् ने बैल का वध किया, चार खेतों की मिट्टी के ढेर से मारने पर वह मर गया, उसके मर जाने पर भी वह अत्यधिक क्रोध में स्थित रहा, (प्रायश्चित्त माँगने पर) प्रायश्चित्त नहीं देगें- (ऐसा कहा गया)।।१०३।।
आठ पुत्रों के पश्चात् उत्पन्न हुई अत्यहङ्कारिणी वणिक्पुत्री भट्टा के वरों को (उद्दण्डता करने पर भी भर्त्सना न करने वाले को देने की इच्छा वाले पिता द्वारा) अस्वीकार कर दिया गया। अमात्य द्वारा (शर्त) स्वीकार करने पर भट्टा प्रदत्त, राज्यकार्य के कारण (अमात्य का) कुसमय घर लौटना, भट्टा द्वारा प्रतीक्षा, (भट्टा के द्वार खोलने से मना करने पर समय से आना), राजाज्ञा से अमात्य के लौटने में विलम्ब, (द्वार न खोलने पर सचिव द्वारा भर्त्सना), रुष्ट भट्टा का रात्रि में ही घर से निकल जाना, चोरों द्वारा चोर सेनापति (के पास ले जाना), सेनापति द्वारा पत्नी बनाने की इच्छा, भट्टा का न चाहना, सेनापति द्वारा जलूक वैद्य को विक्रय, उसको भी न चाहना, (जलूक वैद्य जलूकों को) पकड़वाता था। धन देकर भट्टा के भाई द्वारा उसे मुक्त किया गया। उसके घर में