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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति मूल-छाया-अनुवाद १७९ खद्धाऽऽदाणियगेहे पायस दढण चेडरूवाइं । पियरो भासण खीरे जाइय लद्धे य तेणा उ ॥१७॥ पायसहरणं छेत्ता पच्चागय दमग असियए सीसं । भाउय सेणावति खिंसणा य सरणागतो जत्थ ॥१८॥ वाओदएण राई णासइ कालेण सिगय पुढवीणं । णासइ उदगस्स सती, पव्वयराती उ जा सेलो ॥१९॥
ऋद्धयादानिकस्य गृहे, पायसं दृष्ट्वा चेटरूपाणि । पितरं भाषणं क्षीरं, याचितः रद्धश्च तेन तु ॥१७॥ पायसहरणं छित्वा प्रत्यागत द्रमकः असिना शीर्षम्। भ्राता सेनापतिः खिंसना च शरणागतो यत्र ॥१८॥ वातोदकैः राजिः नश्यति कालेन सिकतापृथ्वीनाम्। नश्यति उदके सति, पर्वतराजिः तु यावत् शैलः ॥१९॥
प्रद्योत द्वारा (प्रतिमा सहित दासी) हरण, (उदायन और प्रद्योत के मध्य) भयङ्कर युद्ध, (पराजित प्रद्योत को बन्दी बनाना, पर्युषणा के दिन बन्दी राजा प्रद्योत द्वारा कहना) आज मेरा उपवास है', (बन्दी बनाते समय उसके मस्तक पर अङ्कित) दासी पति के स्थान पर सुवर्णपट्ट बाँध देने से) पट्टबद्ध राजा हो गया, जिस प्रकार घर पर उपस्थित को क्षमा कर देता है, उसी प्रकार क्रोधित होकर हनन और बन्धन नहीं करना चाहिए।।९३-९६।।
समद्ध व्यक्ति के घर में क्षीरान देखकर नौकर रूप द्रमक के पुत्र द्वारा, पिता से क्षीरान खाने के लिए कहना, माँगने पर उस (पिता के द्वारा) प्राप्त किया गया। चोरों द्वारा क्षीरान हरण, (तृण-पूल आदि काटकर) वापस लौटा हुआ द्रमक (चोरों के सेनापति का) सिर काट लेता है। (सेनापति का) भाई सेनापति नियुक्त किया गया, (सेनापति की मृत्यु का प्रतिशोध न लेने पर आत्मीय जनों का) कुपित होना, (सेनापति द्वारा द्रमक को बाँधना, उससे पूछने पर कि उसे किस प्रकार मारा जाय द्रमक कहता है) जिस प्रकार . शरणागत को (मारा जाता है)।।९७-९८।।
बालू में (खींची गई) लकीर हवा और जल से नष्ट हो जाती है, पृथ्वी में (शरद् ऋतु में) पड़ी हुई दरार वर्षा होने पर नष्ट हो जाती है, परन्तु पर्वत में पड़ी हुई दरार शैल (की स्थिति) पर्यन्त बनी रहती है।।९९।।