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१७८ दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
चंपाकुमारनंदी पचऽच्छर थेरनयण दुमऽवलए । विह पासणया सावग इंगिणि उववाय णंदिसरे ॥१३॥ बोहण पडिमा उदयण पभावउप्पाय देवदत्ताते । मरणुयवाए तायस, णयणं तह भीसणा समणा ॥१४॥ गंधार गिरी देवय, पडिमा गुलिया गिलाण पडियरेण। पज्जोयहरण दोक्खर रण गहणा मेऽज्ज ओसवणा॥१५॥ दासो दासीवतितो छत्तट्ठिय जो घरे य वत्थव्यो। आणं कोवेमाणो हंतव्वो बंधियव्यो य ॥१६॥ चम्पाकुमारनन्दी, पञ्चाप्सरःस्थविरनयनद्रुमवलये। विहगपाशनयः श्रावकः, इङ्गिनी उपपातः नन्दीश्वरे॥१३॥ बोधनं प्रतिमा उदयनः प्रभावः उत्पातो देवदत्तात्। मरणोपपातः तापसः नयनं तथा भीषणाः श्रमणाः ॥१४॥ गन्धारगिरिः दैवतं प्रतिमा गुलिका ग्लानप्रतिचरेण । प्रद्योतहरणं दुष्कररणगहना मेऽद्य उत्सवाः ॥१५॥ दासो दासीपतितः छत्रस्थितः यः गृहे च वास्तव्यः । आनयनं कोपमानः हन्तव्यः बन्धितव्यश्च ॥१६॥
चम्पा (नगरी में स्वर्णकार) कुमारनन्दी, पञ्चशैलद्वीप पर स्थविर द्वारा ले जाना, वटवृक्ष पर बसेरा, भारण्ड पक्षी के पैरों से स्वयं को बांधकर पञ्चशैल पहुँचना, श्रावक नागिल (द्वारा मना करना), इङ्गिनीमरण (द्वारा शरीर-त्याग) (पञ्चशैल पर विद्युन्माली यक्ष रूप में) उत्पन्न, (पटह गले में बाँधकर बजाता हुआ) नन्दीश्वर गमन, (श्रावक नागिल द्वारा) बोध पाकर महावीर प्रतिमा निर्मित कराकर उपासना, राजा उदायन (के पास देवाधिदेव की प्रतिमा कराने का निवेदन), रानी प्रभावती के प्रहार से दासी देवदत्ता का वध, (प्रायश्चित्तवश) मरण के पश्चात् देवलोक में उत्पन्न, तपस्वी वेश में (राजा उदायन को उद्बोधन), अलौकिक फल के बहाने) भयङ्कर (जिनेतर साधुओं के पास ले जाना), जैन श्रमण द्वारा उद्बोधन, गान्धार (जनपद से मुमुक्षु श्रावक का वैताढ्यगिरि (गमन एवं उपवास), देवता द्वारा (सन्तुष्ट हो स्वर्ण प्रतिमा और गुलिकायें देना, (महावीर प्रतिमा की वन्दना हेतु आना), ग्लान-अस्वस्थ हो जाने पर (दासी द्वारा) परिचर्या (से प्रसन्न श्रावक द्वारा प्रदत्त गुटिका से दासी का रूपवती बनना व राजा प्रद्योत की कामना),