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दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति मूल- छाया-अनुवाद
।।८।। पर्युषणाकल्पाध्ययननिर्युक्तिः । ।
पंज्जोसमणाए अक्खराइं होंति उ इमाइं गोण्णाई । परियायववत्थवणा पज्जोसमणाय पागइया ॥५२॥ परिवसणा पज्जुसणा पज्जोसमणा य वासवासो वा । पढमसमोसरणं ति य ठवणा जट्ठोग्गहेगट्ठा ॥ ५३ ॥ ठवणाए निक्खेवो छक्को दव्वं च दव्वनिक्खेवो । खेत्तं तु जम्मि खेत्ते (काले) कालो जहिं जो उ ॥५४॥ पर्युपशमणायाः अक्षराणि भवन्ति तु इमानि गौणानि । पर्यायव्यवस्थापना पर्युपशमनाया प्रकटिता ॥५२॥ परिवसना, पर्युषणा, पर्युपशमना, च वर्षावासश्च । प्रथमसमवसरणमिति च स्थापना ज्येष्ठावग्रह एकार्थाः ॥५३॥ स्थापनायाः निक्षेपः षट्कः द्रव्यं च द्रव्यनिक्षेपः ।
क्षेत्रं तु यस्मिन् क्षेत्रे काले कालो यस्मिन् यत्तु ॥५४॥ आहार, उपधि (आदि) निक्षेप करने, प्राप्त करने, प्राप्त करने योग्य आहार और (गण से) बहिर्गमन या उपाश्रयादि से प्रस्थान के विषय में सम्यक् रूप से परिचित होना चाहिए ।। ५१ । ।
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पर्युपशमना ये अक्षरादि तो गुण- निष्पन्न होते हैं, श्रमणों की पर्यायव्यवस्थापना पर्युपशमना से व्यक्त होती है । । ५२ ।।
परिवसना — चारमास तक एक स्थान पर रहना, पर्युषणा – किसी भी दिशा में परिभ्रमण नहीं करना, पर्युपशमना - कषायों से सर्वथा उपशान्त रहना, वर्षावास- वर्षाकाल में चार मास तक एक स्थान पर रहना, प्रथम समवसरण - नियत वर्षावास क्षेत्र में प्रथम आगमन, स्थापना — वर्षावास के क्रम में ऋतुबद्ध काल के अतिरिक्त काल की मर्यादा स्थापित करना और ज्येष्ठावग्रह — चार मास तक एक क्षेत्र का उत्तम आश्रय आदि - इनमें व्यञ्जनों का अन्तर है अर्थभेद नहीं है ।। ५३ ।।
(पर्युषणावाची उपरोक्त शब्दों में से स्थापना का निक्षेप - दृष्टि से कथन) — स्थापना निक्षेप छ: प्रकार का होता है (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, स्वामित्व एवं करण), द्रव्य-स्थापनानिक्षेप (अर्थात् पर्युषण करने वाले का द्रव्य शरीर और उसके द्वारा उपभोग योग्य एवं त्याज्य अचित - सचित्तादि) द्रव्य, क्षेत्र (स्थापना-1 - निक्षेप), जिस क्षेत्र में स्थापना