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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
कथा-सारांश
जम्बूद्वीप में चम्पा नगरी निवासी स्वर्णकार कुमारनन्दी अत्यन्त स्त्री-लोलुप था। रूपवती कन्या दिखाई पड़ने पर धन देकर उससे विवाह कर लेता था। इस तरह उसने पाँच सौ स्त्रियों से विवाह किया था। मनुष्यभोग भोगते हुए वह जीवन यापन कर रहा था। इधर पञ्चशैल नाम के द्वीप पर विद्युन्माली नामक यक्ष रहता था। हासा और प्रभासा उसकी दो प्रमुख पत्नियाँ थीं। भोग की कामना से वे विचरण कर रही थीं तब तक कुमारनन्दी दिखाई पड़ा। कुमारनन्दी को अपना अप्रतिम रूप दिखाकर वे छिप गईं। मुग्ध कुमारनन्दी द्वारा याचना करने पर वे प्रकट हो बोली पञ्चशैल द्वीप आओ और वे अदृश्य हो गईं।
नाना प्रकार से प्रलाप करते हुए वह राजा के पास गया। राज-उद्घोषक से उसने घोषणा करवायी कि उसे (अनङ्गसेन को) पञ्चशैल द्वीप ले जाने वाले को वह करोड़ मुद्रा देगा। एक वृद्ध नाविक तैयार हो गया। अनङ्गसेन उसके साथ नाव पर सवार होकर प्रस्थान किया। दूर जाने पर नाविक ने पूछा- क्या जल के ऊपर कुछ दिखाई दे रहा है। उसने कहा- नहीं। थोड़ा और आगे जाने पर मनुष्य के सिर के प्रमाण का बहुत काला वन दिखाई पड़ा। नाविक ने बताया कि धारा में स्थित यह पञ्चशैलद्वीप पर्वत का वटवृक्ष है। यह नाव जब वटवृक्ष के नीचे पहुँचे तब तुम इसकी साल पकड़कर वृक्ष पर चढ़कर बैठे रहना। सान्ध्यवेला में बहुत से विशाल पक्षी पञ्चशैल द्वीप से आयेगें। वे रात्रि वटवृक्ष पर बिताकर प्रात:काल द्वीप लौट जायेंगे। उनके पैर पकड़कर तुम वहाँ पहुँच जाओगे।
वृद्ध यह बता ही रहा था कि नौका वटवृक्ष के पास पहुँच गयी, कुमारनन्दी वृक्ष पर चढ़ गया। उपरोक्त रीति से जब वह पञ्चशैल द्वीप पहुँचा, दोनो यक्ष देवियों ने कहा- इस अपवित्र शरीर से तुम हमारा भोग नहीं कर सकोगे। बालमरण तप कर निदानपूर्वक यहाँ उत्पन्न होकर ही हमारे साथ भोग कर सकोगे। देवियों ने उसे सुस्वादु पत्र-पुष्प, फल और जल दिया। उसके सो जाने पर उन देवियों ने सोते हुए ही हथेलियों पर रखकर उसे चम्पा नगरी में उसके भवन में रख दिया। निद्रा खुलने पर आत्मीयजनों को देखकर वह ठगा सा दोनों यक्ष देवियों का नाम लेकर प्रलाप करने लगा। लोगों के पूछने पर कहता- पञ्चशैल के विषय में जो वृत्त सुना था उसको देखा और अनुभूत किया।
श्रावक नागिल उसका समवयस्क था। नागिल ने कहा कि जिनप्रज्ञप्त धर्म का पालन करो जिससे सौधर्म आदि कल्पों में दीर्घकाल तक स्थित रहकर वैमानिक देवियों के साथ उत्तम भोग कर सकोगे। इन अल्प स्थिति वाली वाणव्यन्तरियों के साथ भोग