________________
दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
»
८६
१०२ १०६
गौरी कान्ति
वासासु > वासासुं मोत्तु > मोत्तुं वत्थेसु > वत्थेसुं गहण > गहणं कहण > कहणं णाउ > णाउं ठाणेणं > ठाणेण अणुभवण > अणुभवणं दोसेणु > दोसेणं
१२७
.
छाया लज्जा धात्री धात्री
१२८ १४०
:.
द०नि० में ग्यारह गाथायें ऐसी हैं जिनमें प्राकृत व्याकरण के शब्द अथवा धातु रूपों के नियमानुरूप शब्द-विशेष में किसी ह्रस्व मात्रा को दीर्घ कर देने पर और किसी दीर्घ मात्रा को ह्रस्व कर देने पर छन्द लक्षण घटित हो जाता है। ये गाथायें निम्नलिखित हैं
उपयुक्त प्राकृत शब्द-धातु रूपों के अनुरूप स्वर को ह्रस्व या दीर्घ कर देने और स्वर में वृद्धि या ह्रास करने से छन्द की दृष्टि से शुद्ध होने वाली गाथायेंक्रम सं० गाथा सं० शब्द-संशोधन गाथा
अणितस्सा > अणितस्स चूर्णा आरोवण > आरोवणा विद्या काईय > काइय विद्या
उ> तों १०३
णो > ण ११४
णाणट्ठी > णाणट्ठि ११८
णाणट्ठी > णाणट्ठि १२६ तो > तु
चूर्णा मणुस्स > मणुस्से
देही असंजयस्सा > असंजयस्स देही तीत्थंकर > तित्थंकर गाथिनी
E-Go » ७ ;
९७
१
:
933
इस नियुक्ति में १८ गाथायें ऐसी हैं जिनमें छन्द-लक्षण घटित करने के लिए पादपूरक निपातों - तु, तो, खु, हि, व, वा, च, इत्यादि और इन निपातों के विभिन्न