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जीवनशक्ति या जीवश्वशक्ति ]
जीवनशक्ति या जीवत्वशक्ति
यह श्रात्मा अनादिनिधन है और अनन्त गुण युक्त है, उसके एक-एक गुण में अनन्त शक्ति है ।
प्रथम जीवनशक्ति है । आत्मा को कारणभूत चैतन्यमात्र भाव को धारण करनेवाली जीवनशक्ति है । उस जीवनशक्ति के द्वारा जो जीवित रहता आया हैं, जीवित रह रहा है और जीवित रहेगा - उसे जीव कहते हैं । यह जीवनशक्ति चित्प्रकाशमण्डित द्रव्य में है, गुग में है और पर्याय में भी है; इसीकारण ये सब जीव हैं, फिर भी जीव एक है । यदि जीव तीन भेदों में रहने लगे तो वह तीन प्रकार का हो जायेगा, लेकिन ऐसा है नहीं ।
द्रव्य, गुण और पर्याय - जीव की अवस्थाएँ हैं और जीव तीनों रूप एक वस्तु है । जैसे गुण में अनन्त भेद हैं, वैसे जीव में नहीं हैं, जीव का स्वरूप प्रभेद है ।
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शंका :- यदि जीव प्रभेद रूप है तो भेद के बिना अभेद कैसे हुआ ? अनन्त गुण नहीं होते तो द्रव्य भी नहीं होता । इसीप्रकार पर्याय नहीं होती तो जीववस्तु भी नहीं होती । अतः द्रव्य, गुण और पर्याय का भेद कहने पर अभेद सिद्ध होता है ।
समाधान :- हे शिष्य ! भेद के बिना अभेद तो नहीं होता, परन्तु भेद वस्तु का भङ्ग है । अनेक प्रङ्गों से बनी हुई एक वस्तु होती है ।