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नश्विरण का उपसंहार ]
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नित्य प्रशद्ध पर्यायाथिक, जैसे संसारियों की उत्पत्ति और मरण होते हैं ।
इसप्रकार पर्यायाथिक के ६ भेद हैं। उपसंहार
ये नय पूर्व-पूर्व, विरुद्ध, महाविषयवाले और उत्तरउत्तर सूक्ष्म, अल्प, अनुकूल विषयवाले होते हैं ।
तेईज्ञानयन्त जीव
(सर्वया) करम के उदै केउ देव परजाय पावें,
भोग के विलास जहां करत अनूप हैं । महा पुण्य उदै केउ नर परजाय लहैं,
अति परधान बड़े होइ जग भूप हैं ।। केउ गति हीन पाय दुखी भये डोलत हैं,
राग-दोष धारि पदें भवकूप हैं। पुण्य-पाप भाव यह हेय करि जानत हैं. तेई ज्ञानवन्त जीव पावै निजरूप हैं ॥४।।
(दोहा) प्रतुल अविद्या वसि परै, धरै न प्रातमज्ञान । परपरणति में पगि रहै, कैसे ह निरवान ।।५।। - पंडित श्री दीपचन्द शाह : उपदेशसिद्धान्त रत्न
छन्द ४ व ५
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