________________
४ ]
[ चिद्विलास
लक्षित होता है, जैसे - शक्तियों की चर्चा पर समयसार का एवं प्रदेशत्वशक्ति के प्रकरण में विष्कम्भक्रम एवं प्रवाहक्रम की चर्चा पर प्रवचनसार का प्रभाव दिखाई देता है; तथापि विश्लेषण में आपने अपनी मौलिकता की स्पष्ट छाप छोड़ी है ।
ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ में प्रमुखतः द्रव्य-गुण- पर्याय का जाल फैलाया है। जहाँ देखो, वहाँ द्रव्य-गुण-पर्याय की चर्चा की गई है। द्रव्य-गुण- पर्याय का पृथक् पृथक् निरूपण करने के बाद भी ग्रन्थकार का मन नहीं भरा तो वे शक्तियों के प्रकरण में भी द्रव्य-गुण-पर्याय की चर्चा करने से नहीं चूके । जैसे प्रभुत्वशक्ति के प्रकरण में द्रव्य के प्रभुत्व, गुण के प्रभुत्व तथा पर्याय के प्रभुत्व की चर्चा करते हैं; वीर्यशक्ति के प्रकरण में भी द्रव्यवीर्यशक्ति, गुणatara तथा पर्यावीर्यशक्ति की चर्चा की गई है । इसीप्रकार प्रदेशत्वशक्ति के निरूपण के बाद द्रव्य-गुण- पर्याय का विलास तथा भावभावशक्ति के प्रकरण के बाद कारण कार्य के प्रकरण में द्रव्यकारणकार्य, गुणकारणकार्य तथा पर्यायकारणकार्य ऐसे तीन
-
भेद किये गये हैं ।
ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रन्थकार यह कहना चाहते हैं कि वस्तु का स्वरूप श्रगाध एवं गंभीर है। उसमें जितना अधिक गोता लगावें, उतना अधिक खजाना उसमें से पाया जा सकता है। ग्रन्थकार ने जिस विषय को भी संगृहीत किया है, उसका यच्छी तरह से खोल-खोलकर निरूपण किया है । मानो उस विषय संबंध में उठनेवाली सभी शंकायों-प्रतिशंकाओं का उन्हें पहले से ही आभास हो गया हो और वे उनका निराकरण करते जा रहे हों ।
उन्होंने कतिपय आगम-महासागर के सिद्धान्तों को बड़े ही सुन्दर ढंग से स्पष्ट किया है । जैसे :