________________
10.-..--
७४ ]
[चिद्विलास
....
..
.-
.
--.:.-
तीन गुण (अंश)हैं - द्रव्य, गुण, और पर्याय । वह भाव गुणों का परिणाम धारण कर परिणमता है. वह भाव इन गुण के परिणाम से पृथक् नहीं है । वह उसो भावरूप परिणमन करता है, अतः अन्यत्र वह कहां प्राप्त होगा ?
जैसे पुद्गल वस्तु में स्कंध-कर्म-विकार किसी गुण से तो नहीं हैं, परन्तु उस पुद्गल वस्तु के परिणाम उस स्कंध-कर्म-विकार भाव के रूप में परिणमन करते हैं । अन्य द्रव्य के परिणाम इस कर्म-विकार भाव को धारण करके परिणमन नहीं करते । एक पुद्गल ही स्वांग धारण करके प्रवर्तन करता है, इसमें सन्देह नहीं ।
पुनः इस जीववस्तु के रंजक परिणाम संकोच, विस्तार, अज्ञान, मिथ्यादर्शन, अविरति आदि चेतनविकाररूप होकर परिणमन करते हैं।
इसप्रकार यह चेतन का विकारभाव उस चेतनद्रव्य के रिणाम ही में प्राप्त होता है, कभी अचेतन द्रव्य के के परिणाम में दिखाई नहीं देता, यह निःसंदेह है ।
अतः विकारभाव अपने-अपने ही द्रव्य के परिणाम में होता है, अपने-अपने द्रव्य के परिणाम के आश्रय से ही वह विकार पाया जाता है; अत: इसे भी निश्चय नाम प्राप्त होता है।
-
--
-