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[ चिविलास की निश्चल वृत्ति होती है । वह द्रव्य में हो तो भी निश्चल, गुरणभावना हो तो निश्चल तथा पर्यायवृत्ति की भी निश्चलता होने से राग आदि विकार तो मूल से नष्ट हो जाते हैं । सहजानन्द समाधि प्रकट होती है, निज विश्राम प्राप्त होता है, परिणाम विशुद्ध से भी विशुद्धतर होते चले जाते हैं, स्थिरता प्राप्त होती है, निर्विकल्प दशा होती है ।
अर्थ से अर्थान्तर, शब्द से शब्दान्तर और योग से योगान्तर का विचार (पलटना) नष्ट हो जाता है । भेदविचार या विकल्पनय छूट जाते हैं। परमात्मदशा के नजदीक आ जाता है - इसे 'निर्विचार समाधि' कहते हैं ।
निर्विचार --- ऐसा शब्द, विचाररहित - ऐसा अर्थ और उनका जानपना -- ऐसा ज्ञान; इसप्रकार ये तीनों भेद यहाँ भी जानना चाहिये ।।
(६) निरानन्दानुगत् समाधि :- सम्पूर्ण सांसारिक प्रानन्द छूट जाता है । इन्द्रियजनित विषय-वल्लभ दशा दूर हो जाती है । विकल्प विचार से होनेवाला प्रानन्द मिथ्या जाना । परमिश्रित प्रानन्द जो प्राता था; सो समाप्त हो गया। सहजानन्द प्रकट हुमा । परम-पदवी को नजदोक भूमिका पर आरूढ़ हुआ। ___ जहां विभाव मिटा, वहाँ ऐसा जाना कि मुक्ति के द्वार का प्रवेश समीप है, मुक्तिरूपी वधू से निर्विघ्न सम्बन्ध समीप है तथा अतोन्द्रिय भोग होनेवाला है । यही 'निरानन्दानुगत