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[चिद्विलास
दर्शन सामान्य अवलोकन लक्षरणवाला ही है । एक चेतन सत्ता से दोनों का प्रकाश हुआ है, दोनों की सत्ता एक है । ऐसा तर्क ( ज्ञान ) समाधान करनेवाले से भावश्रृत में होता है । इस भावश्रुत का नाम 'वितर्क' है । इसके श्रनुगत अर्थात् साथ-साथ जो सुख होता है, वह समाधि है । वह समाधि भावश्र ुत के विलास से चित्प्रकाश को जानने से, वेदन करने से, अवलोकन करने से और अनुभव करने से छद्मस्थ को होती है ।
ज्ञाता को अपने आनन्दरूप समाधि उत्पन्न होती है, उसके तीन भेद हैं :- प्रथम तो वितर्क शब्द, दूसरा उसका अर्थ अर्थात् वितर्क का अर्थं श्रुत और तीसरा अर्थ का ज्ञान ।
शब्द से अर्थ, अर्थ से ज्ञान और ज्ञान से होनेवाले आनन्दरूप समाधि है । इसतरह 'वितर्क समाधि' का स्वरूप जानना चाहिये ।
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(४) विचारानुगत समाधि :- 'विचार' का अर्थ है श्रुत का पृथक्-पृथक् अर्थ विचार करना 1 श्रुत के अर्थ द्वारा स्वरूप के विचार में वस्तु की स्थिरता, विश्राम, श्राचरण, ज्ञायकता, श्रानन्द, वेदना, अनुभव और निर्विकल्प समाधि होती है, वही कहते है, । मर्थ कहने से तात्पर्य ध्येयरूप वस्तु से है । वह् द्रव्य या गुण या पर्याय है । द्रव्य का विचार - गुण- पर्यायरूप अथवा सत्तारूप प्रथवा चेतनापुञ्ज