________________
परमात्मस्वरूप की प्राप्ति के उपाय ]
(४३) स्थिरता :- सम्यक्त्वभाव की दृढ़ता स्थिरता है। (४४) प्रभावना :-पूजा प्रभाव करना प्रभावना है । ये सम्यक्त्व के पांच भूषण हैं ।
अब सम्यक्त्व के पांच लक्षण कहते हैं :- १. उपशम, २. संवेग, ३. निर्वेद, ४. अनुकम्पा और ५. आस्तिक्य ।
(४५) उपशम :- राग-द्वेष को मिटाकर स्वरूप को प्राप्त करना उपशम है।
(४६) संवेग :- जिनधर्म तथा निजधर्म से राग संवेग है।
(४६) निर्वेद :- वैराग्य भाव निर्वेद है ।
(४८) अनुकम्पा :- स्वदया एवं परदया का भाव अनुकम्पा है ।
(४६) मस्तिक्य :- स्वरूप और जिनवचन की प्रतीति अस्तिक्य है।
ये अनुभवी के पांच लक्षण हैं ।
इसके पश्चात् छह जैनसार लिखते हैं :- १. वन्दना, २. नमस्कार, ३. दान, ४. अनुप्रयाण, ५. आलाप एवं ६. संलाप - इन्हें नहीं करना चाहिये ।।
(५०) वन्दना :-परतीर्थों, परदेवों और परचैत्यों की वन्दना नहीं करना चाहिये ।