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[ पिद्विलास
गण के बिना ही पर्याय का कारण है, पर्याय का सूक्ष्मत्व पर्याय कारण हैं, पर्याय का वीर्य का कारण, पर्याय का प्रदेशत्व पर्याय का कारण है।
(४) उत्पाद-व्यय कारण है, क्योंकि उत्पाद-व्यय से पर्याय जानने में आती है।
अतः ये पर्याय के कारण हैं और पर्याय कार्य है ।
इसप्रकार कारण-कार्य के भेद हैं, अत: वस्तु का सर्वरस सर्वस्व कारण-कार्य है । जिन्होंने कारण कार्य को जान लिया, उन्होंने सब जान लिया । इस परमात्मा के अनन्तगण हैं, अनन्त शक्तियाँ हैं । अनन्त गण की अनन्तानन्त पर्यायें हैं, अनन्त चेतनाचिन्ह में अनन्तानन्त सप्तभङ्ग सिद्ध होते हैं । इसप्रकार से और भी जी वस्तु की अनन्त महिमा है, उसका वर्णन कहाँ तक किया जावे ? अतः जो सन्त हों, वे स्वरूप का अनुभव करके अमृतरस पीकर अमर हों।
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करता करम क्रिया निहलै विचार देखें,
वस्तु सौ न भिन्न होई यहै परमान है। कहै 'दोपचन्द' ज्ञाता ज्ञान में विचार सोही,
अनुभी अखंड लहि पार्व सुखथान है ।। --- पण्डित दीपचन्द शाह : ज्ञानदर्पण, छन्द ८०
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