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हालाले
४ सम्यग्दर्शन अत्यन्त शुद्ध है और राग, द्वेष. मोह से सर्वथा दूर है, और परम वीतराग भाव को सच्चे
मन से धारण करता है, ऐसा मुनि मोक्ष का स्वामी होता है । अर्थात् सम्यग्ज्ञान को प्राप्त कर वैराग्य & उत्पन्न करता है, तपश्चरण को वृद्धि करता है, सब तरह से इच्छारहित वीतराग चारित्र को बढ़ाता
है वह शीधा हो मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। इसलिए आपापरका भेद ज्ञान बतलाया गया है इसलिए हे भव्य जीवों ! कोटि उपाय बनाकर जैसे बने उस प्रकार से प्रयत्न कर उस स्व-पर विवेक को अपने हृदय से मिलाओ ! आगे और भी ज्ञान की महिमा बतलाते हैं
जै पूरव शिव गये, जाँय अब आगै जै हैं । सो सब महिमा ज्ञानतनी, मुनिनाथ कहै हैं । विषयचाह-दव-दाह, जगत जन अरनि दझावै ।
तासु उपाय न आन ज्ञान धनधान बुझावै ॥७॥ अर्थ-आज से पहले भूतकाल में जितने अनन्त जीव मोक्ष को गए हैं. आज वर्तमान में 8 विवेह क्षेत्रों में जा रहे हैं और आगे भविष्य काल में जितने अनन्तानन्त जीव मोक्ष को जायेंगे सो 8 यह संम सम्यग्ज्ञान की महिमा है । ऐसा मुनियों के स्वामी जिनेन्द्र भगवान ने कहा है । पाँचों & इन्द्रियों के विषय-भोगों को चाह रूपी जंगल को प्राग दावानल जगतजन रूपी जंगल वन राय को ले
अला रहा है । समस्त संसार भस्म-खाक कर रहा है । इस भयंकर विषय 'चाह रूप दावानल को टूथ & बुझाने के लिए संसार कोई भी वस्तु समर्थ नहीं है । एकमात्र सम्यग्ज्ञान रूपो मेघ मंडल हो & उसके दुझाने में समर्थ है । इसलिए रातदिन बढ़ती हुई उस विषय तृष्णारूपी अग्नि को शान्त 28 करने के लिए सम्यग्ज्ञान के पाने का पूर्ण प्रयत्न करना चाहिए। .