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___ अयं उस सम्यग्ज्ञान के दो भेव हैं । एक परोक्ष दूसरा प्रत्यक्ष । इनमें मति ज्ञान और श्रुत है ज्ञान, ये बो परोक्ष शान कहलाते हैं, यह ज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता से उत्पन्न होते हैं । अवधि है ज्ञान और मनःपर्यय ज्ञान ये दो देश प्रत्यक्ष ज्ञान हैं क्योंकि इनके द्वारा जीव द्रव्य, क्षेत्र, काल और है भाव का परिमाण लिए हुए रूपी पदार्थों को स्पष्ट जानता है ।
सकल द्रव्य के गुण अनन्त परजाय अनन्ता, जानै एकै काल प्रगट केवलि भगवन्ता । ज्ञान समान न आन जगत में सुख का कारण,
यह परमामृत जन्म जरामत रोग निवारण ॥३॥ अर्थ-केवलो भगवान अपने केवलनान के द्वारा समस्त द्रव्यों के त्रिकालती अनन्त गुणों है और अनन्त पर्यायों को एक समय में एक साथ प्रत्यक्ष जानते हैं। संसार में जान समान मुख का
अन्य कोई कारण नहीं है। यह सम्यग्ज्ञान जन्म, जरा और मरण रूपी रोग के निवारण करने के है & लिए परम अमृत के समान है । भावार्थ-सम्यक ज्ञान के मूल दो भेद हैं-१ परोक्ष ज्ञान और २६
प्रत्यक्ष ज्ञान । जो ज्ञान पांच इन्द्रिय और मन की सहायता से पदार्थों को जानता है, उसे परोक्षज्ञान कहते हैं। इस परोक्ष ज्ञान के दो भेद हैं-१ मति ज्ञान और २ श्रत ज्ञान । पाँच इन्द्रिय और मन इन छहों में किसी एक के द्वारा एक समय में किसी पदार्थ का जानना मति ज्ञान है। जैसे इन्द्रिय से शीत, उष्ण, स्निग्ध, रुक्ष आदि पदार्थो का जानना, रसना इन्द्रिय से खट
बट्टे, मोठे, तोखे, & चरपरे आदि पदार्थों का मानना, घाण इन्द्रिय से सुगन्ध, दुर्गन्ध को जानना, चक्षु इन्द्रिय से काले, X पीले, नीले, लाल आदि को जानना और कण इन्द्रिय से नाना प्रकार के शम्मों को सीधा मानना तथा