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की आने कहा, महाराज श्री मुझसे शुद्र जल का त्याग नहीं बनेगा । तब राक्ष श्री लोटन सो ना जागने मोना नि.मर र म महाराज बिना आहार निये लौट रहे हैं, मेरा जैन गुल में उत्पन्न होना ही बेकार है । फिर क्या था, उसी समय आपः भाव जाग और आपने शूद्र दल पा व्याग किया व आचार्यश्री को आहार दिया ।
आहार देने के बाद भावना हुई कि अब धीरे-धीरे और म्याग करते जायेंग 1 40 मखनलाल जी शान्धी, पं. ममतिवन्द्र जी मामी. बानमुकुन्द व मावदेव आदि ब्रह्मचारी लोगों की संगति में ग्लूने लगे । शास्त्र अध्ययन करते थे। में 2011 में श्री 108 शालिनागर महाराज जी ने दूभर प्रतिमा बन ग्रहण किया । स्वान् 22023 में मुरैना एकऱ्याणक महा सब हुन' । म अवयर गर या आधा थी बिमा गागर जी(भिण्ट वाल) पधारे। उसी समय सात प्रतिमा अन लिया । सी नन्द आप त्याग की और बनेगा। महाराज जी को नारिमल नद्राका और दीक्षा लने की भावना जगत की। आपने घर वालों से मंजरी नाही । मंजी नहीं मिलने में महागज जी ने दीक्षा को मना कर दी, अभी दीक्षा नहीं होगी । आपने करा ये पाष्ट्री-मंडल में ही लुगा । पोडी-मिडल एक गान नमा धान में टगै म । मं0 2034 फानुगनदी 12 को गांव वालों से दामा याचना कर रपाटी आचार्य दी 108 विधा मागरजी भर नाम पईन ।बाही मनीमाजी में मं।। -1125 चैत्र शुक्ला 13 को गलेक दिक्षा लिपा काम श्री 105 और मागर को स्वया ।
वहीं ने गुरुजी के साथ बिहार कर देहाली पधारे । बदों नाममाम हुआ । चातुर्मास के बाद बिहीर कर गाजियाबाद पहने । अगहनयदी 12 सं0 2026 को आचार्य विमलसागर जी से मुनि दीक्षा ली। आपका नाम श्री 118 मुनि श्री सुमतिसागर जी रपमा गया । पा है आपकी पोरुपना को कि भरा-पूग परिवार छोटवार निग्रंथ मनिपद प्राप्त किया । इससे समाज एवं अपने परिवार का नाम उजवन किया । आप मुनिदीक्षा में 6 वर्ष पूर्व सम्मेद गिखर यात्रा को गये नव आपने शवनाथ की टोंक पर ब्रह्मचर्य धन लिया और भावना की वि. भगवान में मुनिषद बेकर पैदल यात्रा कम । गुरु की आज्ञा लेकर आप सम्मेद शिखर पहुँने । सम्मेद शिखर पर मुनिहंध द्वारा फागण गदी 13 श्रि मं0 2028 में आपको आचार्य कल्प की पदवी प्रदान की। बाद में गुरु समाधि गागांद में हुई व्य गुरु की आज्ञा से मुरैना मन में ध्येय गुदी 5 को थि) 10 2030 को आचार्य पद प्राप्त हुआ । आर जैसे गम्भीर, और स्त्री एवं साम्बी आचार्यों द्वारा समाज में भारी धर्म प्रभावना फैल रही है। जहां-जहां बिहार करते हैं वही अनेक भन्य जीव ब्रत धारण करते हैं एवं आज तक करीबन 107 शियों को मुनि, माथिका, अल्लक, क्षुल्लिका का ब्रत देकर आत्मवाल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। जहां चातुर्मास होता है वहां कोई न कोई अार्मिक आयोजन आपके उपदेशानुसार होता है। जैसा कि अजमेर में औषधालय, ईर गुजरात में मानस्तम्भ, मुरैना (म0 प्र0) में मानस्तन, भिण्ड (म0प्र0) में चौबीसी, सोनामिरि निद्वक्षेत्र में त्यागीकृती आश्रम, सम्मेद शिखर टोंक, गिरनार टोंक, जलमन्दिर, 11 कुन्टल की अट धातु की प्रतिमा आदि का निर्माण हुआ है। अब तक आचार्य श्री के चातुर्मास निम्न-निम्न स्थान पर हुए हैं