________________
होना या झड़ने को निर्जरा तत्त्व कहते हैं। और आत्मा से सर्व कर्मों के अत्यन्त क्षय जाने को मी तत्व है। इन सातों तत्वों का प्रयोजनभूत यह है कि जीव के संसार निवास के प्रधान कारण आस्नव और बंध तत्थ है । इनके जाने बिना संसार के परित्याग का प्रयत्न हो कैसे किया जा सकता है। इस लिए इन दोनों तत्वों की उपयोगिता सिद्ध है । आत्मा का प्रधान लक्ष्य मोक्ष पाना है, इसलिये उसका जानना भी आवश्यक है और उसके प्रधान कारण संबर और निर्जरा है, क्योंकि नवीन कर्मों का निरोध और पूर्व संचित कर्मों का क्षय हुए बिना मोक्ष संभव नहीं है । इस लिये संवर, निर्जरा और मोक्ष इन तीन तत्थों का जानना प्रयोजनभूत । संसार में जीव का निर्वाह अजीव के बिना संभव नहीं है, अतएव श्रजीव तत्व का जानना भी श्रावश्यक है । इस प्रकार उपयुक्त सातों तत्व जीव के लिए प्रयोजनभूत माने गये हैं। यह जीव मिथ्यात्व कर्म के उदय से ऊपर बतलाये गये सातों तत्वों का विपरीत श्रद्धान करता है, वह मिथ्यादृष्टि जोव है । वह किस प्रकार करता है :
--
पद्धरि छंद - तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आपको नाश मान ।
रागादि प्रगट जे दुःख दैन, तिन ही को संवत गिनहि चैन ||५|| शुभ अशुभ बंध के फल मझार, रति अरति करे निजपद विसार । आतम हित हेतु विराग ज्ञान, ते लखँ आपको कष्ट दान || ६ || रोकी न चाह निज शक्ति खोय, शिवरूप निराकुलता न जोय । याही प्रतीत जुत कछुक ज्ञान, सो दुःखदायक अज्ञान जान ||७||
पृष्ठ
३२