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8 प्राण पाये जाते हैं। द्विन्द्रिय जीवों के जैसे सोप, शंख, कौड़ी, केंचुआ, लट आदि इनके स्पर्शन और 8 ले रसना ये हो इन्द्रियां होती हैं और इनके छः प्राण होते हैं । एकेन्द्रिय से दो प्राण अधिक होते हैं ।
रसना इन्द्रिय और वचनवल, एकेन्द्रिय की तरह इनके भी दो ज्ञान होते हैं । तीन इन्द्रिय जोब जैसे 8 कुथु, चोंटो, कुम्भी, बिच्छू, धुन खटमल, जू, लोक इनके घाण इन्द्रिय अधिक होती है, ये छूकर
स्वाद लेकर वा सूचकर जानते हैं। ज्ञान दो होते हैं ।- प्रति श्रुत। पूर्ववत् प्राण एक अधिक होते हैं 8 & घ्राणइन्द्रिय को लेकर सात प्राण होते हैं । चौइन्द्रिय जीव जैसे मक्खी, डाँस, मच्छर, भिड़, भ्रमर, & पतंग, तोतरी, टोडी आदि इनके प्रांख अधिक होती हैं । इनके आठ प्राण व दो मतिश्रुत ज्ञान होते 8
हैं। पंचेन्द्रिय मन रहित असनी जैसी कोई जाति के, पानी में पैदा होने वाले सर्प, इनके कान भी होते हैं । इनके नौ प्राण या मतिश्रति ये वो ज्ञान होते हैं। पंचेन्द्रिय मन सहित सैनी जैसे चार पग वाले मृग, गाय, भैंस, कुत्ता, बिल्ली, बकरी, मैना, तोता आदि । उर से चलने वाले नागादि; जल से
पैदा होने वाले मछली; मगर; कछुएं प्रावि इनके मनबल को लेकर दशप्राण होते हैं । साधारण दो & ज्ञान भतिश्रुति होते हैं । मन एक सूक्ष्म स्थान में कमल के आकार अंग होता है जिसको सहायता से 8 सैनी प्राणी संकेत समझ जाता है । शिला अलाप ग्रहण कर सकता है । और कारणकार्य का
विचार कर सकता है । तर्क वितर्क या अनेक उपाय सोच सकता है। छः प्रकार के तियंचों के क्या-क्या दुःख है । वह रसना इन्द्रिय के द्वारा वर्णन नहीं किये जा सकते हैं उनका दुःख भुगते सो हो जाने या केवलशानी जाने हैं । सो भी सब जगत् को प्रत्यक्ष प्रकट है कि एकेन्द्रिय जीवों के अकथनीय
कष्ट हैं । पृथ्वीकायिक-- मिट्टी को खोदते हैं, रोंदते हैं, जलाले हैं, कूटते हैं, उन पर अग्नि जलाते & है, धूप को ताप से मिट्टी के प्राणी मर जाते हैं । मिट्टी के शरीरधारी जोत्रों का देह एक अंगुल 8