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8 पुण्योदय से प्राप्त भोगों में संतोष नहीं रहता । इस कारण से सदा पाकुसता रूप महान् मानसिक & दुःख अनुभव करते रहते हैं और अपनी आयु को पूरी करके नीच गति प्राप्त करते हैं । बिमानवासी
स्वर्गों के देवों को यद्यपि भवनत्रिक के समान ईर्षा भाव नहीं होते हैं, और वे उनको अपेक्षा बहुत ना अधिक सुखी भी होते हैं । तथापि सम्यग्दर्शन रस्न के बिना अपनी प्रियतमा देवियों के वियोग काल 8 में वे अत्यन्त दुःख का अनुभव करते हैं। इसके अतिरिक्त देवों को आयु जब छह मास शेष रह ४ & जाती है तब उनके गले में पड़ी हुई रत्नों की माला, चेहरे को हीनता से मुरझाई हुई दर्शती है 8 8 और वस्त्राभूषण कान्तिहीन हो जाते हैं, वे देव देखकर एकदम आश्चर्य से स्तम्भित रह जाते हैं, ४ 8 और फिर अवधि ज्ञान से उन्हें यह ज्ञात होता है कि हमारी वेद पद के सिर्फ छह मास आयु शेष रह ४
गया है, तब मिथ्यादृष्टि देव अत्यन्त विकल्प होते हैं और नाना प्रकार से विलाप करते हैं । उस समय & उमके परिवार के सथा अन्य वेव आकर समझाते हैं और उसके दुःख दूर करने को भरपूर चेष्टा करते
हैं परन्तु मिथ्यात्व मोहित मति होने के कारण उसको ममझ में कुछ नहीं आता है, और ज्यों ज्यों समय बीतता जाता है त्यों त्यों यह अधिक विलाप कर अत्यन्त दुःखी होता जाता है जब उसे पह ज्ञात होता है कि यहां से मरकर जीव मनुष्य या तिर्यंच योनि में उत्पन्न होता है तो वह विलाप करता हुआ कहता हैं कि हाय हाय, कृमि कुल से भरे हुए, मल रुधिर आदि से व्याप्त, अत्यन्त दुगंधित गर्भ में मैं नव मास तक कैसे रहूंगा। मैं क्या करूं, कहां जाऊं किसकी शरण लेऊ, हाय, मेरा कोई ऐसा बन्धु नहीं है जो मुझे यहां गिरने से बचा सके। इन्द्र महाराज बज्र के आयुध को धारण करने
बाला, ऐरावत हाथी की सवारी करने वाला, देवों का स्वामो भी जिसको जीवन भर सेवा को है, मुझे & बचाने के लिए वह समर्थ नहीं है तो और को क्या बात । इस तरह नाना प्रकार विलाप करता हुआ