________________
नाम
& प्रशंसक वचनों को त्यागकर तथा स्त्री कथा, भोजन कथा, राज कथा और चोर कथा इन वचनों को 8 8 छोड़कर दूसरे के हित करने वाले कर्ण को सुखदायक, सब प्रकार के संशय को नाशक मुनिराजों के
मुखरूपी चन्द्रमा से समस्त प्राणियों को शान्तिदायक सच्चा हित करने वाले और भ्रम रूपी रोग के हरण करने वाले, अमृत के समान, सर्व पापों से दूर, सर्व प्राणियों के समता करने वाले, अपने आत्म हित में अपने चित्त को धारण करने वाले, स्व पर को हितकारी, सर्व राग द्वेष विकल्प जाल से रहित, ऐसे वीतरागी मुनि मोक्ष पाने का पात्र मिष्ट वचन बोलते हैं । जो महान् पुरुष परम ब्रह्म स्वरूप सम्यक चारित्र में लीन है, उनको अपने अंतरंग में भी वचन बोलना इष्ट नहीं है, मुनि तो निरन्तर अपने आत्म स्वभाव से ही सन्मुख होकर वधन वर्गणा को बन्द कर देते हैं, वार्तालाप नहीं करते हैं, घही भाषा समिति है । आगे तीसरी ऐषणा समिति लिखते हैं
जो कृत कारित अनुमोदना रहित नव कोटि शुद्ध वीतरागी साधु उत्तम कुल वाले श्रावक के घर जाकर भोजन संबंधी छयालीस दोषों को टालकर, तप को बढ़ाने के लिये निरस रस आदि को छोड़ कर नवधा भक्ति युक्त, दातार सात गुण संयुक्त, योग आचरण धारी श्रावक द्वारा 8 प्रदान किये हुए भोजन को जो परम सपोधन अंजुल जोड़ कर लेते हैं । जो भी केवल धर्म साधने के अर्थ मौन से लेते हैं। यह एषणा समिति है । अब आदान निक्षेपण समिति का वर्णन करते हैं
वे साधु शौच के उपकरण कमंडलु को, ज्ञान के उपकरण शास्त्र को और संयम के उपकरण पोछो को, देख शोधकर ग्रहण करते हैं और देख शोध कर ही रखते हैं, वह अपहृत संयमी है, और 8 उपेक्षा संप्रम धारी मुनियों के पुस्तक कमंडल आदि नहीं होते हैं वे उपेक्षा संयमधारी मुनि परमल जितेन्द्रिय एकान्तवासी बिल्कुल वे चाह होते हैं। निरंतर आत्म ध्यान में लीन रहते हैं इसलिए इन 8