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6 या क्रमशः भी उत्पन्न होता है, दोनों का भी नियम नहीं है। अब त्रस पर्याय पाने को दुर्लभता को & बतलाते हैं :
चौपाई--दुर्लभ लहि ज्यों चिन्तामणी, त्यो पर्याय लही त्रस तणी ।
लट पिपील अलि आदि शरीर, धरि-धरि मरयो सही बह पीर ॥६॥
अर्थ-जिस प्रकार चिन्तामणि रत्न का पाना अत्यन्त दुर्लभ है, उसी प्रकार त्रस की पर्याय & पाना भी अत्यन्त बुर्लभ है। क्योंकि इस जीव ने निगोद पर्याय में अनंत काल बिताने के बाद ४ अत्यन्त कठिनता से त्रस पर्याय को प्राप्त किया, तथा नाना योनियों में लट, कोड़ी, मकोड़ा, मच्छर & भौरा भारि शरीर बार-बार धारण कर मरा और बहुत कष्ट सहे । अर्थात् अस पर्याय में असंख्यात
काल प्रमान शरीर स्थिति के पूरा होने तक यह जीव द्वोत्रिय मावि विकलेन्द्रियों में बार-बार जन्म X मरण किया करता है। ऐसे ही भव सम्बंषी स्थिति को काय स्थिति कहते हैं। जैसे द्वीन्द्रिय जीवों की & एक भव सम्बंधी उत्कृष्ट आयु द्वादश वर्ष की है यह भय स्थिति है। जो कोई जौब द्वीन्द्रिय को एक & पर्याय को आयु को पूरा कर मरा, और पुनः द्वीन्द्रियों में उत्पन्न हुआ फिर मरा, इस प्रकार लगातार & एक ही काय के धारण करने के काल को काय स्थिति कहते हैं । इस अनुक्रम से या इस प्रकार 6 द्वीन्द्रियादि विकलेन्द्रिय जीवों को कायस्थिति असंख्यात हजार वर्ष की है । आगे पंचेन्द्रिय जीवों के 8 दुःखों का वर्णन करते हैं:
चौपाई-कबहूं पंचेन्द्रिय पशु भयो, मन बिन निपट अज्ञानी थयो।
सिंहादिक सैनी व कूर, निर्बल पशु हति खाये भूर ॥७॥
कबहूं आप भयो बलहीन, सबलनि करि खायो अति दीन ।