________________
जन्म-मरण जन्य महान दुःख के भार को सहन करता है, और भाग्यवशात् काललाध आने पर वह 8 & जोय वहां से निकल कर पृथ्वी, जल अग्नि, पवन और प्रत्येक वनस्पति को पर्यायों को प्राप्त होता है
यहां पर संसार में मरण या वृद्धावस्था का दु.ख ही सबसे बड़ा दुःख माना गया है, जिन ओयों को अत्यन्त . शीघ्रता से मरण करना पड़ता हैं उनके कष्टों को सर्वज्ञदेव के सिवाय और कौन जान सकता है, वह दुःख वचमातीत है । उन निगोदियों के दुःख को कल्पना उस पुरुष से की जा सकती है, जिसके हाथ पर रस्सी से खूब कस कर बांध दिए जाए, और आँख, नाक, कान, मुंह को कपड़ा आदि भर कर बिल्कुल बन्द कर दिया जाय, जिससे कि वह बोलचाल नहीं सके। फिर उनके गले में
रस्सी का फन्दा डालकर ऊंचे वृक्ष आदि पर लटका दिया जाय और ऊपर से बैतों से खूब पीटा जाय 8 तो वह दुखिया जोव न रो सकता है, न बोलचाल इशारा आदि द्वारा अपने दुःख ही किसी से प्रकट
कर सकता है, किन्तु अभ्यन्तर ही असीम कष्ट का अनुभव कर आकुल-व्याकुल हो घबराता हुआ छटपटाता रहता है । इसी प्रकार को अव्यक्त अभ्यन्तर वेदना(बु.ख) को एकेन्द्रिय निगोदिया जीव प्रति क्षण सहा करता है, इस प्रकार क्लेशों को सहते-सहते भाग्योदय से कोई जीव निगोद से बाहर निकल पाता है, जिस प्रकार कि भाड़ में अन्न भेजते हुए कोई एक कण का दाना भाड़ से बाहर निकल कर
आ जाय । इस प्रकार बाहर निकले हुए जोव कमशः या अक्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और ल प्रत्येक वनस्पति में उत्पन्न होते हैं, और उस पर्याय में असंख्यात काल तक निवास कर अनेक भारी
वेदना को सहते हुए जन्म मरण करते रहते हैं । और प्रत्येक वनस्पति उसे कहते हैं जो एक पारीर 8 का स्वामो एक हो जीव होता है जैसे आम, नीम, नारियल आदि के वृक्ष । निगोद राशि से निकल & कर जीव सीधा मनुष्य पर्याय भी प्राप्त कर सकता है और उसी भव से मोक्ष भी जा सकता है
Nur