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ढाल
8 अध्यापक के युक्त विद्यालय आदि लोकोत्तर मिश्रशारण है किन्तु जब जीव के जन्म, जरा, मृत्यु,
व्याधि इष्ट वियोग अनिष्ट संयोग अलाभ, दरिद्रता आदि कारणों से दुःख उपस्थित होता है तब कोई भी शरण देने वाला नहीं होता है । समुद्र में जहाज के डूब जाने पर उस में बैठे हुए पक्षी का
जैसे कोई भी सहायक (शरण) नहीं है इसी प्रकार विनाश काल आने पर हे जीव ! तेरा भी कोई & शरण सहाई नहीं है। जब तक तेरे कुशल क्षेम है तब हो तक तुझे सभी शरण सहाई दिखते हैं। 8 जब जीव का मरण काल आता है तब उसे चारों ओर से घेरकर बड़े-२ सैनिक शस्त्रों से सुसज्जित ।
होकर क्यों ना खड़े हो जाय, अत्यन्त स्नेह करने वाले बन्धुजन भी क्यों ना घेरे हुए बैठे रहें ? 8
बड़े-२ डाक्टर; वैद्य, हकीम और लुकमान क्यों ना अमोघ औषधि रामबाण, चन्द्रोदय रस आदिल 0 से रक्षा कर रहे हों, परन्तु यह प्रात्मा राम तो सब के देखते देखते हो उड़ जाता है। लोग सम& झते हैं कि शास्त्रों में बड़े बड़े मंत्र यंत्राविक बतलाये गये हैं वे भी पया हमारी रक्षा न करेंगे ? 8
आचार्ग उन्हें उत्तर देते हैं कि हे भच्यात्मन् ! मंत्र आदि भी तेरे स्वतंत्र शरण नहीं हैं, ये सब पुण्य के
वास हैं; जब तक तेरे पुण्य का उदय बना रहेगा तब तक ही वे शरण हैं, अन्यथा आज तक अगणित 8 प्राणी अजर अमर पद प्राप्त हुए विखलाई देते। ऐसा जानकर हे आत्मन् ! संसार में तू किसी को & भी शरण मत समन्स और व्यर्थ से पर को शरण मान आकुलता रूप मत हों, यथार्थ में तेरे दर्शन & 8 ज्ञान और चारित्र ही शरण हैं. ये रत्नत्रय आत्मा को सदा काल रक्षा करने वाला है। इसलिए परम ४ श्रद्धा रूप पूर्ण भक्ति के साथ उन्हीं को सेवा और आराधना कर । इस प्रकार का चिन्तयन करने से & जोब फे संसारी पदार्थों में ममता भाव नष्ट हो जाता है और अर्हत्सर्वज्ञ के वचनों में दृढ़श्रद्वान विश्वास & हो जाता है । आगे संसार भावना कहते हैं