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छह में माता-पिता, भाई-बहिन, पुत्र मित्र आदि नाना बन्धुजनों का संयोग हो गया है सो थोड़े 8 8 समय के पश्चात् रहने वाला नहीं है। फिर इनके वियोग में शोक क्यों करना चहिए ? ये तो पक्षी
को तरह एक वृक्ष पर निवास करते हुए रात्रि का समय बिताकर प्रभात होने से दो दिशा पलायमान हो जाते हैं। देखो अत्यन्त लाड़ प्यार से पोपा हुआ, नाना प्रकार के सुगन्धित वस्तुओं से
मर्दन उबटन, उत्तमोत्तम सुस्वाद भोज्य पदार्थों से संतृप्त किया हुआ भी यह देह एक क्षणमात्र में & नष्ट हो जाता है। जैसे कि मिट्टी का कच्चा कलस पानी मरते हो विघट जाता है फिर शरीर के & रागादिक से आक्रान्त होने पर शोक क्यों करना चाहिए ? देखो जो लक्ष्मी बड़े पुण्यशालो चक्रवर्ती 8 आदि महापुरुषों के भी शास्वत नहीं ठहरती है स्थिर रह नहीं सकेगी। इसलिये सम्पत्ति के वियोग 8 में खेव क्यों करना ? इस मोह के महात्मय पर आश्चर्य है कि यह जीव संसार को सभी कुछ वस्तुओं
को धन योवन जोवन तक को जल के बुलबुले के समान क्षणभंगुर देखते हुए भी उन्हें नित्य मानकर © उनमें मोहित हो रहा है इसलिए हे भव्य जीयो ! अपने विभावभाव जो महामोह है उसको छोड़कर & संसार के समस्त संयोग को वियोग संयुक्त हो निश्चय करो ! संसार को कोई वस्तु स्थिर या नित्य & नहीं है जैसे मेला लगने से नाना देश का मानव आकर इकट्ठा होता है और फिर मेला खत्म होने
से नाना देश का माना नाना वेश में चला जाता है ऐसा समझना चाहिए । अतएव स्थायो आत्म पद में ही अपनी बुद्धि को लगाओ ! ऐसा विचार करना सो अनित्य भावना है । इस प्रकार के विचार करने से संसार के किसी भी पदार्थ में भोग कर छोड़े हुए उच्छिष्ट पदार्थों के समान राग भाव
नहीं रहता प्रतएव उसका वियोग होने पर शोक और विषाद भी नहीं उत्पन्न होता । इस तरह सर्व & प्रकार को जगत को रचना को अनित्य समझ कर सत्पुरुषों को निरन्तर अपने आत्मा को नित्य का 8