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8 नाम का पांचवां अतिचार है ।
(२) देशव्रतों के अतिचार-वर्ष, मश, पक्ष आधि के लिये देश में जितने क्षेत्र का परिमारण कर लिया है उससे बाहर किसी व्यक्ति को या नौकर आदि को भेजना प्रेषण नाम का पहिला अतिचार है । मर्यादा के बाहर स्थित पुरुष को शब्द सुनाकर अपना अभिप्राय प्रकट करना शब्द-श्रवण नाम
का दूसरा अतिचार है । मर्यादा से बाहर वाले क्षेत्र से किसी को बुलाना या कोई वस्तु मंगवाना & सो आनयन नाम का अतिकार है । मर्यादा से क्षेत्र के बाहर काम करने वाले पुरुष को हाथ आदि 8 से संकेत करना रूपाभि व्यक्ति नाम का चौथा अतिचार है। इसी प्रकार मर्यादा से बाहर वाले पुरुष को कंकर पत्थर आदि फेंककर इशारा करना मुलाना सो पुद्गलक्षेप नामका पांचवां अतिचार है ।।
(३) अनर्थ वंडवत के अतिचार-राग भाव को अधिकता से हंसी मजाक के साथ अशिष्ट और भंड वचन बोलना कन्दर्प नामका अतिचार है । हंसी मजाक करते हुए काम की कुचेष्टा करना कौत्कुच्य नाम का अतिचार है । धृष्टता पूर्वक बहुत बकवाद करना, अनर्थक बातचीत करना, प्रलाप करना सो मोखर्य नाम का अतिचार है । भोग और उपभोग को वस्तुओं को आवश्यकता से अधिक रखना सो अति प्रसाधन या भोगानर्थक्य नाम का चौथा अतिचार है । प्रयोजक को बिना बिचारे आवश्यकता से अधिक किसी काम को करना या कराना सो असमीक्ष्याधिकरण नामका पांचवां अतिचार है । जैसे भोजन करते समय यदि एक लोटा जल की आवश्यकता है तो हांडी जल भर बैठना।
अब चार शिक्षाब्रतों के अतिचार कहते हैं । (१) प्रथम सामायिक शिक्षाबत के अतिचारसामायिक को करते समय मन को इधर उधर चलायमान करना, स्थिर नहीं रखना, मनो दुःप्रणिधान नाम का अतिचार है। सामायिक के समय सामायिक पाठ को जल्दो कुछ का कुछ बोलने लगना, X