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नाम का अतिचार है।
५) परिग्रह परिमारण अणुवत के अतिचार - घोड़ा बल आदि जितनी दूर आराम से जा सकते हैं उससे भी अधिक दूर तक लोभ के वश होकर जोतना सो अतिवाहन नाम का पहला अतिचार है। १-लोभ के घशीभूत होकर मुनाफा कमाने को गर्ज से धन धान्यादिक का अधिक संग्रह करना सो अति संग्रह नाम का दूसरा अतिचार है, व्यायार के निमित्त जितना धान्य आदि खरीद कर
रखा था, उसके बेचने से अधिक मुनाफा मिलने पर यह सोचकर पश्चाताप करना कि यदि हमने & इतना अधिक और खरीद कर रख लिया होता तो आज खूब लाभ होता, यह विस्मय नाम का 0 तोसरा अतिचार है संग्रहीत वस्तु के बेचने पर काफी मुनाफा मिलते हुए उसे इस भावना से नहीं & बेचना कि अभी तो और भी भाव चढ़ेगा और खूब मुनाफा मिलेगा। यह अति लोभ नाम का अति& चार है । बेल घोड़ा आदि अपने आधीन पशुओं, मजदूरों और नौकर चाकरों पर लोभ के वश से अधिक भार लादना सो अति भारारोपण न म का पांचवां अतिचार है ।
अब गुणवत के अतिवार कहते हैं- १) दिग्वत के अतिचार :-जीवन पर्यन्त के लिए जो ऊपर जाने की सोमा निश्चित को यो आवश्कता पड़ने पर उसे बढ़ा लेना सो ऊर्धातिक्रम है। इभी प्रकार नीचे जाने की सीमा को बढ़ा लेना अधो व्यतिक्रम है, और पूर्व पश्चिम आदि दिशाओं में तिरछे आने जाने को मर्यादा को बढ़ा लेना, सो तिर्यग् व्यतिक्कम नाम का तीसरा अतिचार है। जो कि अज्ञान से प्रमाद से या भूल से आवश्यकता की विवशता से किसी एक विशा की मर्यादा घटाकर दूसरी ओर की दिशा-सम्बन्धी मर्यादा को बढ़ा लेना, सो क्षेत्र वृद्धि नाम का चौथा अतिचार है । दिग्वत के धारण करते समय जो दिशात्रों की मर्यादा को थी उसे भूल जाना सो सीमा विस्मृति 8