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प्रश्न ६-सकलवत किसे कहते है ?
उत्तर-५ महाव्रत, ५ समिति, ६ आवश्यक, ५, इन्द्रियजय और शेष ५ गुण । ये सकलव्रत कहलाते हैं ।
प्रश्न ७–सकलव्रती कौन हैं ?
उत्तर–सम्पूर्ण रूप से व्रतों को पालने वाले महाव्रती दिगम्बर मुनि सकलव्रती हैं।
प्रश्न ८–मुनि कौन है ?
उत्तर–समस्त आरम्भ, परिग्रह रहित, विषयभोग के त्यागी तथा रत्नत्रय के उपासक गुरु मुनि कहलाते हैं ।
इन चिन्तन समसुख जागै, जिमि ज्वलन पवन के लागे । जब ही जिय आतम जाने, तब ही जिय शिव सुख ठाने ।।२।।
शब्दार्थ—इन = बारह भावना । चिन्तन = बार-बार विचारने से । समसुख = समतारूपी सुख । जागै = उत्पन्न होता है । जिमि = जैसे । ज्वलन = अग्नि । पवन = हवा । लागै = लगने से । जब ही = जिस क्षण । जिय = आत्मा । जाने = पहचान लेता है । तब ही = उसी क्षण । शिवसुख = मोक्ष सुख । ठाने = पाता है।
अर्थ-जैसे हवा के लगने से अग्नि प्रज्वलित हो उठती है । वैसे ही भावनाओं का चिन्तन करने से समतारूपी सुख जागृत हो जाता है । जब यह जीव अपनी आत्मा के स्वरूप को पहचान लेता है उसी समय मोक्षसुख को पा लेता है।
प्रश्न १–अनुप्रेक्षा या भावना के चिन्तवन से क्या होता है ?
उत्तर-भावनाओं का चिन्तवन करने से समतारूपी सुख की प्राप्ति होती है तथा यह जीव अपने आत्मस्वरूप को जानता है ।
प्रश्न २–आत्मस्वरूप को जानने से क्या लाभ है ?
उत्तर-आत्मस्वरूप को जानने से शिवसुख की प्राप्ति होती हैं । भावनाओं से चिन्तवन के बिना आत्मध्यान नहीं, आत्मध्यान के बिना शिवसुख और शिवसुख के बिना कभी भी शाश्वत सुख और शान्ति नहीं मिल सकती हैं ।