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पंचम ढाल
भावनाओं के चिन्तन से लाभ
(चाल छन्द १४ मात्रा) मुनि सकल व्रती बड़भागी, भव भोगनतें वैरागी । वैराग्य अशावन माई नि अनुपेशा भाई !!१||
शब्दार्थ-सकल व्रती - महाव्रती । बड़भागी = भाग्यशाली । भव = संसार । भोगते = पंचेन्द्रिय संबंधी विषयों से । वैरागी = उदास । उपावन = उत्पन्न करने के लिए | माई = माता | चिन्तै = चितवन । अनुप्रेक्षा = भावना ।
अर्थ—हे भाई ! महाव्रती मुनिराज बड़े भाग्यवान हैं । वे संसार और भोगों से विरक्त हो जाते हैं । वे मुनिराज वैराग्य को उत्पन्न करने के लिए माता के समान बारह भावनाओं का चिन्तवन करते हैं ।
प्रश्न १-संसार में भाग्यशाली कौन है ?
उत्तर---"मुनि सकल व्रती बड़भागी ।" मुनिराज सकल व्रत के धारी भाग्यवान हैं।
प्रश्न २–वे मुनिराज कैसे होते हैं ? उत्तर—“भव भोगनतें वैरागी ।" संसार एवं भोग से विरक्त होते हैं। प्रश्न ३-वैराग्य की उत्पादक माता कौन है ? उत्तर-वैराग्य की उत्पादक भावनाएँ हैं, वे १२ हैं
(१) अनित्य, (२) अशरण, (३) संसार, (४) एकत्व, (५) अन्यत्व, (६) अशुचि, (७) आस्रव, (८) संवर, (९) निर्जरा, (१०) लोक, (११) बोधिदुर्लभ, (१२) धर्म ।
प्रश्न ४-वैराग्य की प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-बारह भावनाओं का जो वैराग्य की माताएँ हैं, प्रतिदिन चिन्तवन करना चाहिए ।
प्रश्न ५--अन्प्रेक्षा किसे कहते हैं ?
उत्तर-संसार, शरीर और भोगादि के स्वरूप का बार-बार चितवन, करना अनुप्रेक्षा है ।