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छङ्गाना
प्रश्न २ - निगोद के कितने भेद हैं ?
उत्तर- निगोद के दो भेद हैं- ( १ ) नित्य निगोद, (२) इतर निगोद ।
नित्य
है ?
उत्तर- -वह जीवराशि जहाँ के जीवों ने अनादिकाल से अब तक स पर्याय नहीं पाईं, उन्हें निगोद कहते हैं। (भविष्य में त्रस पर्याय पा सकते हैं ।)
प्रश्न ४ – नित्य निगोद से जीव किस परिणाम से निकलते हैं ? उत्तर - नित्य निगोद से जीव लेश्या की मन्दता से निकलते हैं । प्रश्न ५ -- इतर निगोद किसे कहते हैं ?
उत्तर – जो निगोद से निकलकर अन्य पर्याय पा पुनः निगोद में उत्पन्न हो वह इतर निगोद है ।
प्रश्न ६ – निगोदिया जीव कहाँ रहते हैं ?
उत्तर ---- निगोदिया जीवों के रहने के स्थान भी दो हैं--- (१) सातवें नरक के नीचे एक राजू क्षेत्र कलकल पृथ्वी में । (२) सर्वलोक । प्रश्न ७ – एकेन्द्री जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर – (१) पृथ्वीकायिक (३) अग्निकायिक
(२) जलकायिक
(४) वायुकायिक
(५) वनस्पतिकायिक—ये एकेन्द्री के पाँच भेद हैं ।
निगोद के दुःख और वहाँ से निकलने का क्रम
एक श्वास में अठदश बार, जन्म्यो भयो भर्यो दुखभार ।
निकसि भूमि जल पावक भयो, पवन प्रत्येक वनस्पति श्रयो ||५|| शब्दार्थ - अठदश = अठारह | जन्म्यो = पैदा हुआ । म
मरा । भर्यो = सहन किया । निकसि
निकलकर । पावक = अग्नि । अर्थ -- इस जीव ने निगोद के भीतर एक श्वास में अठारह बार जन्म लिया और मरण किया तथा अनेक दुःखों को सहन किया । वहाँ से निकलकर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति जीत्रों में उत्पन्न हुआ ।
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