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नाला.
सकल प्रत्यक्ष का लक्षण व ज्ञान-महिमा सकल द्रव्य के गुण अनन्त परजाय अनन्ता । जाने एकै काल, प्रकट केवलि भगवन्ता ।। ज्ञान समान न आन जगत में सुख को कारन ।
इहि परमामृत जन्म-जरा- मृत रोग निवारन ।।३।। शब्दार्थ-गुण = सहभावी । पर्याय = क्रमभावी । एकै काल = एकसाथ । प्रगट = प्रत्यक्ष । केवलि भगवन्ता = केवली भगवान । ज्ञान समान = ज्ञान के बराबर । आन = दूसरा । परमामृत = उत्कृष्ट अमृत । जरा = बुढ़ापा । मृत = मृत्यु । निवारन = नाश करनेवाला । ____ अर्थ—सम्पूर्ण द्रव्यों के अनन्त गुण और पर्यायों को केवली भगवान एक ही साथ प्रत्यक्ष जानते हैं । संसार में ज्ञान के बराबर दूसरा कोई पदार्थ सुख देनेवाला नहीं है । यह सम्यग्ज्ञान ही जन्म-जरा-मृत्युरूपी रोगों को नष्ट करने के लिए उत्कृष्ट अमृत के समान है ।
प्रश्न १-द्रव्य किसे कहते हैं ? उत्तर--जो गुण और पर्याय सहित हो, वह द्रव्य है । प्रश्न २...गुण किसे कहते हैं ? उत्तर—जो द्रव्य के साथ-साथ सदैव रहते हैं, वे गुण कहलाते हैं । प्रश्न ३–पर्याय किसे कहते हैं ?
उत्तर--पर्याय क्रमभावी होती हैं अथवा गुणों के विकार को पर्याय कहते हैं।
प्रश्न ४–केवली भगवान किनको कहते हैं ?
उत्तर—वीतराग, सर्वज्ञ हितोपदेशी अरहन्त भगवान को केवली भगवान कहते हैं ।
प्रश्न ५–परम अमृत क्या है ? । उत्तर–सम्यग्ज्ञान जन्म-जरा-मृत्युरूपी रोगों का नाशक परम अमृत है । प्रश्न ६ --ताप या रोग किसे कहते हैं ? उत्तर---तीन रोग-(१) जन्म, (२) जरा, (३) मृत्यु । प्रश्न ७---जगत में सुख का कारण क्या है ??