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छहढाला प्रश्न ३--मद किसे कहते हैं ? उत्तर—मद—अहङ्कार या घमण्ड को कहते हैं ।
छह अनायतर व तीन मूढ़ता कुगुरु, कुदेव, कुवृष- सेवक की, नहिं प्रशंस उचरै है । जिनमुनि जिनश्रुत बिन कुखुरादिकं, जिन्हें जमान की है ।।१४।।
अर्थ--सम्यग्दृष्टि जीव कुगुरु, कुदेव, कुधर्म, कुगुरु सेवक, कुदेवसेवक एवं कुधर्म सेवक की प्रशंसा नहीं करता है । जिनदेव, निग्रंथ जैन मुनि और जैनशास्त्र के सिवाय अन्य कुगुरु आदिक को नमस्कार भी नहीं करता है। ___ स्पष्टीकरण-भय, आशा या स्नेह से कुदेवादि को नमस्कार करने पर ही सम्यक्त्व में दोष आता है । राजा, गुरु, माता-पिता को विनय करने में श्रावक को दोष नहीं है । विरोधी आदि को जबर्दस्ती से नमस्कार आदि करने में भी श्रद्धान नष्ट होने की आशङ्का नहीं करनी चाहिये ।
दोषरहित गुण सहित सुची जे, सम्यक् दरश सजे हैं। चरितमोहवश लेश न संयम, मैं सुरनाथ जजे हैं ।। गेही पै गृह में न र ज्यों, जल तें भिन्न कमल है। नगरनारि को प्यार यथा, कादे में हेम अमल है ।।१५।।
शब्दार्थ-सुधी = बुद्धिमान । सजे = भूषित । चरितमोह = चारित्रमोहनीय कर्म । वश = निमित्त से । लेश = थोड़ा । संयम = व्रत । पै = परन्तु । सुरनाथ = इन्द्रादि देव । जजे हैं = पूजा करते हैं | गेही = गृहस्थी । गृह = घर । रचें = लीन होते हैं । ज्यों = जैसे । नगर-नारि = वेश्या । यथा = जैसे । कादे = कीचड़ । हेम = सोना । अमल = निर्मल, स्वच्छ ।
__ अर्थ---जो बुद्धिमान २५ दोषों से रहित, आठ गुणों सहित सम्यग्दर्शन से शोभायमान हैं, किन्तु चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से थोड़ा भी संयम धारण नहीं कर पाते हैं, तो भी इन्द्रादि देव उनकी पूजा करते हैं । वे यद्यपि घर में रहते हैं, गृहस्थ हैं, तो भी घर में लवलीन नहीं होते हैं । जैसे— कमल पानी में रहता हुआ भी पानी से अलग रहता है । कीचड़ में फँसा हुआ सोना भी निर्मल होता है । वेश्या का प्यार धन पर ही होता है । इसी