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छहदाला
मध्यम अन्तर आतम है, जे देशव्रती अनगारी । जनन कहे अविरत समदृष्टि, तीनों शिवमगचारी ।। सकल निकल परमातम द्वैविध, तिनमें घाति निवारी । श्री अरहन्त सकल परमातम, लोकालोक निहारी ।।५।।
शब्दार्थ-देशव्रती = एक देशव्रत पालनेवाले, पंचम गुणस्थानवर्ती । अनगारी = परीषह रहित मुनि छठवें गुणस्थानवर्ती । अविरत-व्रत-रहित । समदृष्टि = सम्यग्दृष्टि (चतुर्थ गुणस्थान वाले) । चारी = चलानेवाले (पालने वाले) । तिनमें = उनमें । घाति = घातिया कर्म । निवारो - नाश करनेवाले । लोकालोक = लोक और अलोक 1 निहारी = देखनेवाले । सकल = शरीर या कर्म सहित ।
अर्थ...-देशव्रतों के पालनेवाले श्रावक और सर्वदेशव्रतों के पालनेवाले छठे गुणस्थानवर्ती मुनि मध्यम अन्तरात्मा हैं । व्रतरहित सम्यग्दृष्टि जघन्य अन्तरात्मा हैं ये तीनों अन्तरात्मा मोक्षमार्ग पर चलनेवाले होते हैं । परमात्मा के दो भेद हैं--(१) सकल परमात्मा, (२) निकल परमात्मा । घातिया कर्मों का नाश करनेवाले, लोक-अलोक को देखने-जाननेवाले अरहन्त भगवान सकल परमात्मा कहलाते हैं। .
प्रश्न १--देशव्रती किसे कहते हैं ? उत्तर- (१) जो एक देश व्रतों का पालन करता है। (२) त्रस हिंसा का त्यागी हैं, स्थावर की हिंसा का त्यागी
नहीं है वह पाँचवाँ गुणस्थानवी जीव देशव्रती
कहलाता है। प्रश्न २--अनगारी का क्या अर्थ है ?
उत्तर-न अगार इति अनगार = जिसका कोई घर नहीं ऐसे सकलव्रती को अनगार कहते हैं । ( छठा गुणस्थानवर्ती )।
प्रश्न ३–अरहन्त किन्हें कहते हैं ?
उत्तर---चार घातिया, कर्मरहित, अनन्त चतुष्टय सहित, वीतराग, सर्वज्ञ हितोपदेशी, केवलज्ञानी जीव को अरहन्त कहते हैं ।
प्रश्न ४–अलोक किसे कहते हैं ?
उत्तर-जिसमें आकाश द्रव्य को छोड़कर अन्य द्रव्य नहीं रहते, वह अलोक है ।