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छहढ़ाला
शब्दार्थ- एकान्त = एकपक्षरूप कथन । दूषित = खोटे विषयादिक = पाँचों इन्द्रियों के विषय आदिक । पोषक = पुष्ट करनेवाले । अप्रशस्त = खोटे । समस्त = सम्पूर्ण । कपिलादि = सांख्य, बौद्ध, वैशेषिक आदि । रचित = बनाये हुए । श्रुत = शास्त्र । अभ्यास = पढ़ना-पढ़ाना । सो = वह | कुबोध = गृहीत मिथ्याज्ञान । (बहु) बहुत । देन = देनेवाला । त्रास = दुःख ।
अर्थ—एकान्त रूप से कथन, दूषित/पंचेन्द्रियों के विषयों को पुष्ट करने वाले, कपिलादि के द्वारा बनाये हुए सम्पूर्ण खोटे शास्त्रों को पढ़ना, पढ़ाना गृहीत मिथ्याज्ञान हैं | वह बहुत दुःख देनेवाला है ।
प्रश्न १-एकान्तवाद किसे कहते हैं ?
उत्तर–अनेक धर्मों की अपेक्षा न करके वस्तु का एकरूप से ही कथन करना । जैसे राम-पुत्र ही है ।।
प्रश्न २–अनेकान्तवाद किसे कहते हैं ? ।
उत्तर—भिन्न-भिन्न धर्मों की अपेक्षा से एक वस्तु का विरोध रहित अनेक धर्मात्मक कथन करनेवाला सिद्धान्त अनेकान्त जैनदर्शन का मूल सिद्धान्त है 1
प्रश्न ३–उदाहरण देकर समझाइए । उत्तर-एक राम में अनेक धर्म हैं । कारण वस्तु अनन्त धर्मात्मक है
राम पुत्र भी है, पिता भी है, पति भी है, ससुर भी हैं आदिआदि। एक ही राम दशरथ की अपेक्षा पुत्र थे । एक ही राम लव-कुश की अपेक्षा पिता भी थे ।
एक ही राम सीता की अपेक्षा पति भी थे । परन्तु सब धर्मों को न मानकर मात्र एक धर्म को मानना ही एकान्त है । यद्यपि राम दशरथ की अपेक्षा पुत्र ही हैं, पर पुत्र की अपेक्षा पिता भी हैं । 'भी' अनेकान्त का सूचक है और अपेक्षा रहित 'ही' एकान्त का सूचक है । अनेकान्त उदारता का द्योतक है ।
प्रश्न ४-पंचेन्द्रिय के विषय कौन से हैं ? उत्तर—स्पर्शन इन्द्रिय का-स्पर्श
रसना इन्द्रिय का-रस घ्राण इन्द्रिय का--ग्रन्थ