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छहढ़ाला
२७ उत्तर—“न तिन भव भ्रमण छेव'' कुदेव की सेवा से संसार-भ्रमण नहीं छूटता अपितु बढ़ता ही है ।
प्रश्न ७....-कुधर्म का लक्षण बताइए ।
उत्तर-"शगादि भाव हिंसा समेत, दर्वित त्रस थावर मरण खेत । जे क्रिया तिन्हें जानहु कुधर्म ।'
(१) राग-द्वेष करना भाव हिंसा है। (२) त्रस और स्थावर जीवों का घात करना, उनको मारना द्रव्य
हिंसा है । हिंसा सहित जो-जो क्रियाएँ हैं उन्हें कुधर्म कहते हैं । प्रश्न ...-कधर्म का श्रद्धान करने से क्या फल होता हैं ?
उत्तर–“तिन सरधै जीव लहै अशर्म" कुधर्म का श्रद्धान करने से जीव दुःख पाता है।
प्रश्न ९–गृहीत किसे कहते हैं ? उत्तर—जो परोपदेशादि परनिमित्त से होता है उसे गृहीत कहते हैं । प्रश्न १०-गृहीत मिथ्यादर्शन किसे कहते हैं ? उत्तर–कुगुरु, कुदेव, कुधर्म के श्रद्धान को गृहीत मिथ्यादर्शन कहते हैं । प्रश्न ११-कुगुरु, कुदेव, कुधर्म की सेवा का फल बताइये ।
उत्तर-.."जो कुगुरु, कुदेव, कुधर्म सेव, पोर्षे चिर दर्शन मोह" अर्थात् जो कुगुरु, कुदेव और कुधर्म की सेवा करता है वह चिरकाल तक दर्शनमोह को पुष्ट करता है।
प्रश्न १२–दर्शनमोह किसे कहते हैं ?
उत्तर—आत्मा के सम्यग्दर्शन गुण को घातने वाले को दर्शनमोह कहते हैं।
गृहीन मिथ्याज्ञान एकान्तवाद- दूषित समस्त, विषयादिक पोषक अप्रशस्त । कपिलादिरचित श्रुत को अभ्यास, सो है कुबोध बहु देन त्रास ।।१३।।