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छहढ़ाला
प्रश्न ११–मिथ्यात्व के कितने भेद हैं ? उत्तर-(१) अगृहीत, (२) गृहीत ।
मिथ्यादृष्टि की मान्यता मैं सुखी दुखी मैं रंक राव, मेरे धन गृह गोधन प्रभाव । मेरे सुत तिय मैं सबल दीन, बेरूप सुभग मूरख प्रवीन ।।४।।
शब्दार्थ-रंक = गरीब । राव = राजा । धन = रुपया, पैसा । गृह = घर । गोधन = गाय-भैंसादि । प्रभाव = बड़प्पन । सुत = लड़का । तिय = स्त्री । सबल = बलवान । दीन = कमजोर । सुभग = सुन्दर । मूरख = अज्ञानी । प्रवीन = पण्डित ।।
अर्थमिथ्यादृष्टि जीव ऐसा मानता है कि “मैं सुखी हूँ, मैं दुःखी हूँ, मैं गरीब हूँ, मैं राजा हूँ, मेरे धन है, मेरे घर है, मेरे गाय-भैंस हैं, मेरा बड़प्पन है, मेरे पुत्र है, स्त्री है, मैं बलवान हूँ, मैं कमजोर हूँ, मैं सुन्दर हूँ, मैं मूर्ख हूँ, मैं पण्डित हूँ ।”
प्रश्न १–सुखी-दु:खी, राजा-रंक ये जीव के गुण हैं या पर्याय ? उत्तर-सुख-दुःखादि सभी जीव के पर्याय है, गुण नहीं हैं । प्रश्न २-गुण नष्ट होते हैं या नहीं? और पर्याय नष्ट होती है या नहीं ?
उत्तर-गुण संदैव साथ रहते हैं कभी नष्ट नहीं होते हैं । पर्याय सदा नष्ट होती रहती है।
प्रश्न ३-मिथ्यादृष्टि की बुद्धि कैसे होती है ? उत्तर--मिथ्यादृष्टि की पर-पदार्थ में अपनत्व बुद्धि होती है ।
अजीव एवं आस्रव तत्त्व का विपरीत श्रद्धान तन उपजत अपनी उपज जान, तन नसत आपको नाश मान । रागादि प्रगट ये दुःख देन, तिनही को सेवत गिनत चैन ।।५।।
शब्दार्थ-तन = शरीर । उपजत = उत्पन्न होते । उपज = उत्पत्ति । नसत = नाश होते । आपको 2 आत्मा की । रागादि = राग-द्वेष, मोह आदि । प्रगट = प्रत्यक्ष । देने = देनेवाला। तिनही = उनको ही 1 गिनत = मानता है । चैन = सुखरूप ।