________________ 116 छहढ़ाला मुख्योपचार दुभेद यों, बड़-भागि रत्नाय धरैं / अरु धरेंगे ते शिव लहैं तिन, सुजश-जल जगमल हरॆ / / इमि जानि आलस हानि साहस, ठानि यह सिख आदरो। जबलों न रोग जरा गहै, तबलों झटिति निजहित करो / / 14 / / यह राग आग दहै सदा, तातें समामृत सेइये / चिर भजे विषय कषाय अन दो, त्याग निजपद हो / कहा रच्यों पर- पद में न तेरो, पद यहै क्यों दुःख सहै / अब 'दौल' ! होउ सुखी स्वपद रचि, दाव मत चूको यहै / / 15 / / ग्रन्थ रचना का समय इक नव बसु इक वर्ष की, तीज शुक्ल वैशाख / कर्यो तत्त्व उपदेश यह, लखि 'बुधजन' की भाख / / 1 / / लघु-धी तथा प्रमाद तें, शब्द अर्थ की भूल / सुधी सुधार पढ़ो सदा, जो पावो भव-कूल / / 2 / /