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· चतुर्विंशति स्तोत्र
आचार्य शब्द का निर्देश आचार्य संमतभद्र का निर्देश प्रायः स्वामी शब्द से किया है अतः टीका में पृ. 160 पर स्वामिसूक्त करके उनके रत्नकरण्डश्रावकाचार से अनेक श्लोक उद्धृत किये हैं सागर धर्मामृत में अष्ट मूल गुणों के कथन में स्वामी संमत भद्रमते लिखकर उनका नाम निर्देश भी किया है इसी में भोग्गेय भोग परिमाण वृत के अतिचारों के कथन में अत्राह स्वामी यथा लिखकर र. आ. का श्लोक देकर उसकी व्याख्या भी की है और शिष्यः की व्याख्या आप्तोपदेश संपादित शिक्षा विशेषाः स्वामि संभत भद्रादयः की है ।
भट्टा कलंक देव को टीका के अन्र्तगत तथा चाहुर्भट्टाकलक देवा करके लघीयस्त्र्य के अन्तिम श्लोक में कुछ श्लोक उद्धृत है । अतः टीका यत्तात्विकाः लिख कर आचार्य कुन्द कुन्द का उल्लेख किया है ।
आचार्य अमृतचन्द्र कातिर्देश प्रायः ठक्कुर (ठाकुर) शब्द के साथ किया है यथा एतच्य विस्तरेण ठक्कुरामत चंद्र विरचित समयसार टीकायां द्रष्टव्यं । तथा र » आ. से श्लोक उद्धृत करके लिखा है- एतदनुसारेणैव ठक्कुरोऽपीदमपाठीत
___ गुणभद्राचार्य का निर्देश श्री भद् गुण भद्रदेवपादाः लिख कर आत्मानुशासन से श्लोक उद्धृत किया है | रायसेन को श्री भद राय सेन पूज्यैरप्य बाचिः लिख कर निर्देश किया है | आचार्य सोमदेव का उल्लेख प्रायः सोमदेव पंडित के नाम से किया है । अतः टीका में उक्तं च सोमदेव पंडितैः लिखकर उनके उपासकाध्ययन से श्लोक उद्धृत किये हैं | आचार्य अमितगति को अमित गति नाम से निर्देश किया हैं । आचार्य वसुनंदि का उल्लेख अब ० टी. में एतच्य भगवद् वसुनंदि सैद्धान्त देव या दैराचार टीकाया व्याख्यातं द्रष्टव्यं । ऐसा किया है। आचार्य प्रभाचन्द्र का निर्देश र क्षात की