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चतुर्विधति स्तोत्र
यही पद्धति निरबाध बतलायी है । अर्थात् व्यवहार साधन है और निश्चय साध्य है । मोक्षमार्ग साधन है और मोक्ष साध्य है । साधन यथार्थ-समीचीन और अनुकूल होगा तो ही साध्य सिद्धि सुलभता से हो सकेगी ।। ९ ।। ___ आपके सिद्धान्त में संयम की सिद्धि के लिए सम्यग्ज्ञान व भेद-विज्ञान प्रमुख है । भेदविज्ञान से संयम स्थिर व सुदृढ़ होता है और संयम साधना से कषायों का क्षय होता है । कवाया भाव होने पर परमधाम मुक्ति की प्राप्ति होती है । इस प्रकार ज्ञान मुक्ति प्राप्ति के हेतु सिद्ध होता है परन्तु वह (ज्ञान) सम्यक् चारित्र अर्थात् संयम के साथ रहने पर ही हेतु कारण सिद्ध होता है । सम्यक् चारित्र जीवन में नहीं है, संयम आराधना जिसे तपाराधना कहा जाता है यदि नहीं है तो केवल (अकेला) ज्ञान मोक्ष का हेतु साधक नहीं हो सकता |वह अहेतु ही रहेगा !हे जिन! इस प्रकार आपने सुनिश्चित सिद्धान्त निरूपित किया है || १० ॥
हे जिन! आपने स्वयं भी इसी विधि से परिपूर्ण चारित्र के भार को पारकर लिया अर्थात् संसार से निस्तीर्ण हो गये । आयु की स्थिति के ज्ञाता अपने अन्य अघातिया कर्मों के बन्धन को काटकर अपनी आयु की स्थिति के समान बना लिया । फलतः आयु के अन्त में आप एक समय में ऊर्ध्वगति को प्राप्त हुऐ । जिस प्रकार अग्नि की ज्वाला सीधी ऊपर ही की ओर जाती है, उसी प्रकार सकल कर्म बन्धन से विमुक्त हो केवली भगवान भी सीधे ऊपर की ओर गमन कर सिद्धालय में जा विराजते है ॥११॥
वहाँ सिद्ध लोक में आप अचल, अखण्ड, एकरूप आत्म प्रदेशी हो सम्पूर्ण ही विश्व के दृष्टा हो गये । अर्थात् आप अपने केवल दर्शन अनन्तदर्शन से तीनों लोकों के अकारण दृष्टा हो जाते हैं । अपने स्वसंवेदन-आत्मोत्थ अनन्तज्ञान में समस्त द्रव्य अपनी अनन्त गुण, पर्यायों